दिल
जब दिल दुखी होता है,
तो बड़ा बुरा लगता है,
दिल करता है
दिल को हाथ में लेके सहलाऊँ,
प्यार से कहूँ, 'सब्र कर'
दर्द हल्का हो जाएगा
फिर धीरे-धीरे थपकाऊँ,
सुला दूँ थोड़ी देर अपनी हथेली पर,
मगर सीने में नहीं सोता
तो हथेली पे सो पाएगा, पता नहीं,
शायद कोई मरहम हो
जो लगा दूँ इसे,
बड़ा अँधेरा है इन दिनों इसमें
रौशनी में ले जाऊं इसे,
ले जाऊं उसके पास,
रख दूँ उसके पैरों में,
कहूँ, छुले इसे,
पूछूं, यह दर्द मुझसे तो कम नहीं होता,
तू कर पाएगा?
फिर याद आया उसने कहा था
"मोहब्बत के पेड़ पर
दर्द के फल लगते हैं
मेरे दिल में भी बहुत दर्द है,
इस जहाँ का,
हर इन्सां का,
जब भी कोई आंसू कहीं गिरता है,
मेरा दिल भी रोता है"
अब सोच रही हूँ,
पहले अपना दिल सहलाऊँ,
या उसका?
टिप्पणियाँ
मेरा दिल भी रोता है"
अब सोच रही हूँ,
पहले अपना दिल सहलाऊँ,
या उसका?
komal ehsaason se utha prashn ... kya jawaab hoga , jab dil hi aisa hai
पहले अपना दिल सहलाऊँ,
या उसका?
दूसरे का सहला कर ही खुद के दिल को भी राहत मिलती है।
दिल तो परमात्मा की नियामत है.दिल ही में तो परमात्मा बसता है.'जब जरा नजरें झुकाई,देखली तस्वीरे यार.' दींन दुखियों की सेवा में आप तो नित ही परमात्मा के दर्शन कर रहीं हैं.
पहले अपना दिल सहलाऊँ,
या उसका?
बहुत खूब