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चली आऊँ

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जब तू बुलाए, चाहे जहाँ बुलाए, मैं चली आऊँ, तेरे क़दमों के निशां मिल जहाँ जाएँ, मैं चली आऊँ न मुश्किल रोके, न दूरी डराए तेरे दर तक चली आऊँ, कितना भी नामुमकिन लगे चाहे, तेरे घर तक चली आऊँ तेरी सूरत कि एक झलक मिल जाए, ये हसरत लिए चली आऊँ, तेरे क़दमों में जगह मिल जाए, इस चाहत में चली आऊँ तेरी प्रीत कि रीत जीवन बन जाए, तुझको तरसती चली आऊँ, मेरा हर पल तेरा ध्यान बन जाए, थिरकती तेरी धुन पे चली आऊँ मेरा 'मैं' तुझ में खो जाए, बन बेगानी चली आऊँ, मेरी हर ख्वाहिश बस तू हो जाए, हो के दीवानी चली आऊँ Photo courtesy Google जिस सिम्त से तेरी आवाज़ आए, मैं दौड़ी चली आऊँ , इससे पहले के यह साँस थम जाए, मैं भागी चली आऊँ यहाँ और वहाँ भी तू नज़र आए, कहाँ कहाँ चली आऊँ ? कोई ऐसी जगह नहीं जहाँ तू न नज़र आये, तेरा हुक्म हो जहाँ, वहाँ चली आऊँ माफ़िओं को जहाँ ज़िन्दगी मिल जाए, सर झुका के चली आऊँ, जहाँ मोहबतों कि उम्र बढ़ जाए, सब कुछ भुला के चली आऊँ तेरे दर तक चली आऊँ, तेरे घर तक चली आऊँ
अक्सर अपने आप को भीड़ से जुदा देखा, चहरों को नराज़ तो कभी हैरतज़दा देखा, वो समझ न सके मेरे क़दमों का सबब, मैंने इस फ़र्क़-ए-सोच में मंसूबा-ए-खुदा देखा 

मेरा गुड्डू !

वो खो गया था, फिर  कुछ पलों के लिए मिला था, लगता है फिर खो गया है मैं जानती हूँ मिल जाएगा फिर मुझे, आगोश में लेलेगा फिर मुझे, कोई सफाई नहीं देगा, मोहब्बत से अपनी उलझा लेगा फिर मुझे, पता नहीं कहाँ जाता है? सैर पे निकलता है या खुद भी भटक जाता है? चाहे कितने भी दिनों के लिए जाता है, एक दिन लौट के ज़रूर आता है, बस  खुश हो, शादाब हो, हर अंधियारे एहसास से आज़ाद हो, रस्ते पे होना कोई हादसा हो, उसके कदम गुज़र जाने के बाद हो उसके होने का फरमान आ गया है  मेरा जहाँ फिर महक गया है, आहट सी है, शायद घर का रास्ता मिल गया है, खो गया था, लौट आया है