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मम्मी के हाथ

कुछ दिनों पहले मुझे दिल्ली जाने का मौका मिला, मैं मम्मी से करीब दो साल के बाद मिल रही थी. उनके हाथ कुछ अलग से लगे. उनके हाथ मुझे वापिस आने के बाद भी याद आते रहे, यह वो हाथ नहीं थे जो मैं बचपन से देखती आई थी. यह हाथ जैसे कुछ कह रहे थे, मुझे एहसास दिलाने की कोशिश कर रहे थे की वक़्त बड़ी तेज़ रफ़्तार से गुज़र रहा है और  हमारी मसरूफ ज़िन्दगियों के पास वक़्त ही नहीं है. दर्द बहोत है और वक़्त थोड़ा है  मगर आस अभी बाकी और उम्मीद अभी ज़िंदा है… तुम्हारे हाथोँ की उभरती झुर्रियों में छिपी हैं वो सारी यादें, जब गोल-मटोल गोरे-गोरे हाथ तुम्हारे हमें गोद  में उठा लेते थे रोते थे कभी तो थपथपाते थे, जो बीमार हुए तो सर सहलाते थे, रातों को भी हमारे आराम की टोह लेते थे, ग़लती पे रास्ता दिखाते थे, अब हम दूर हो गए हैं तुमसे, अब हम तुम्हारे हाथ ही नहीं आते, मगर जानती हूँ आज भी उठते हैं हमारे लिए हर रोज़ तुम्हारे हाथ दुआओं में, माँग लेना यह भी अपनी दुआओं में, के हम भी ले सकें अपने हाथों में हाथ तुम्हारे, तुम्हारी तरह हम भी कर सकें अपने फ़र्ज़ पूरे, तुम्हारे अकेलेपन के लम्हों को चुरा सकें तु