पापा की गुड़िया
हाँ मैं बच्चे से एक औरत बन गयी हूँ, मगर अंदर से मैं वही तुम्हारी गुड़िया हूँ, वही गुड़िया जिसे तुमने चलना सिखाया था हाँ यह ज़िस्म बदल गया है, मगर मैं आज भी वही रूह हूँ, जिसे तुमने पहली-पहली बार गोद में उठाया था फ़ोटो:गूगल आज भी जब डर जाती हूँ तो तुम्हें ढूंढ़ती हूँ, ज़िन्दगी कि अँधेरी रातों में तुम्हें ढूंढ़ती हूँ, कुछ अच्छा होता है है तो तुम्हें सोचती हूँ, तुम्हारी मुस्कुराती आँखें ढूंढ़ती हूँ, सोचती हूँ जब मुझे ऊप्पर से देखते हो, कितनी बार मत्थे पर बल लाते हो, और कितनी बार शब्बाशी देते हो? या बस आँखों ही आँखों में मुस्कुराते हो… दिल करता है तुमसे खूब बतियाने का, अपनी हर छोटी-बड़ी कामयाबी सुनाने का, कैसे सच हो रही हैं तुम्हारी दुआएँ हमारे लिए, बड़ी तफ्सील से तुम्हें सुनाने का.… आज नहीं तो कल तुम्हारे पास आना ही है, खुदा के पहलू में तुम और मेरी कहानी होगी, यह उम्र तो वैसे भी फानी है, पापा, वहाँ अपनी मुलाक़ात रूहानी होगी