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सितंबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छोटी

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आभार गूगल  एक सहमी सी छोटी लड़की अक्सर मेरे पास आ जाती है, लोगों के बीच में छुपा लेती हूँ उसे  कभी अपनी हँसी के पीछे, कभी हाज़िर-जवाबी की ओड़ में, शायद ही कोई देख पाता  है उसे पर जब कभी अकेले में मिलती है तो हावी सी हो जाती है ज़हन से छिपाये नहीं छिपती मेरे ख्यालों से खेलने लगती है, अगर-मगर की डगर पे ले जाती है, फिर मैं अपने ख्यालों का हाथ पकड़ के  विश्वास के शहर में ले आती हूँ, वो ना जाने कहाँ खो जाती है, या शायद गुड़िया बड़ी हो जाती है...

किस तरह समेट लूँ डब्बों में तुझको, ऐ घर, तुझे तो मेरी साँसों से लिपट कर चलना होगा...

दुआ

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आज से ठीक एक हफ्ते बाद हम पुएर्तो रिको से अमेरिका चले जाएंगे और ज़िन्दगी के एक नए अध्याय की शुरुआत करेंगे। ये वो वक़्त है जब दिल में कई तरह के ख़याल आते हैं, वाशिंगटन डीसी जैसे शहर में काम करना मतलब जीवन को नयी रफ़्तार से जीना  होगा। नए लोग, शायद नए लक्ष्य, न जाने क्या-क्या बदलेगा। मगर उसके क़दमों वही शान्ति, वही सुकून, वही तस्सली और वही स्पष्टता मिलती रहेगी। वो सुनेगा और जवाब देगा, और दुआओं का सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा। इस सिलसिले में आपका सबका साथ और सबकी हामी मिल जाए तो फिर हर दुआ अपनी मंजिल पा ही लेगी। अमन के लिए दुआओं में  मेरी दुआ भी जोड़ ले, ऐ  खुदा, तू भी अमन ही चाहता है, तेरी चाहत में मेरी चाहत भी जोड़ दे, ऐ  खुदा  दुआ: गूगल फोटो  अमन की बस बात नहीं, हालात में असर ज़रा सा कर सकूँ, जब लगे के क़दमों तले ज़मीं सरक रही है, तेरे रहम पर भरोसा कर सकूँ  मेरी हर राह को तेरी तरफ मोड़ दे, ऐ खुदा  ग़म और गुस्से के ठीक बीच में, मोजज़ा-ए-हंसी बन के मिलते रहना, डर और नाउम्मीदी को हरा कर, तस्सल्ली बन के दिल में बसते रहना,  मेरे एहसासों की उम्र को ई