छोटी
आभार गूगल एक सहमी सी छोटी लड़की अक्सर मेरे पास आ जाती है, लोगों के बीच में छुपा लेती हूँ उसे कभी अपनी हँसी के पीछे, कभी हाज़िर-जवाबी की ओड़ में, शायद ही कोई देख पाता है उसे पर जब कभी अकेले में मिलती है तो हावी सी हो जाती है ज़हन से छिपाये नहीं छिपती मेरे ख्यालों से खेलने लगती है, अगर-मगर की डगर पे ले जाती है, फिर मैं अपने ख्यालों का हाथ पकड़ के विश्वास के शहर में ले आती हूँ, वो ना जाने कहाँ खो जाती है, या शायद गुड़िया बड़ी हो जाती है...