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नया चश्मा

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पिछले दिनों हिंदुस्तान में काफी राजनितिक माहौल  बना रहा। हर दूसरा शख्स राजनीतिज्ञों जैसी भाषा बोल रहा था। एक दुसरे की पार्टी पर हम सबने अपनी-अपनी राय रखी। तरह-तरह की तोहमतें लगाईं। इसी तरह धार्मिक इलज़ाम भी लगते हैं और कई बार तो यह छींटाकशी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी की जाती है… और फिर यही बातें रास्ता देती हैं जातीय, धार्मिक या राजनितिक उत्पात को. अगर हम अपनी सोच को, भाषा को, अपने  बोलों को थोड़ी अच्छी और सच्ची वाली लगाम दें तो हम काफी हद तक देश और दुनिया का माहौल बेहतर कर सकते हैं। सच तो यह है अच्छाइयाँ सब में हैं, बस नज़र-नज़र की बात है, जिसका जैसा चश्मा, वो बस वैसा देखता है… http://funfamilycrafts.com/pipe-cleaner-love-goggles/   क्यूँ उठा लेते हैं हम पत्थर  जब फूलों की कमी नहीं? क्यों बढ़ा-चढ़ा कर लगाते हैं तोहमत, जब उन बातों में सच्चाई की ज़मीं नहीं? किस हक़ से बात करते हैं सज़ा देने की, जब आँखों में प्यार की नमी नहीं? हम ही अच्छे और वो बस नालायक, ये बात कुछ जमी नहीं! ढूंढो तो अच्छाई हर एक में है, अच्छे सिर्फ हम ही नहीं! बढ़ा लो हाथ, क