दो जहाँ का फासला
किसी चेहरे में कभी किसी शेर में, कभी ख्वाब में मिल जाते हो मगर मिलके भी नहीं मिलते अब तुम, कहाँ से आते हो, किधर चले जाते हो? सोचती हूँ तुम्हें तो उलझती चली जाती हूँ वो भी कुछ नहीं कहता, तुम भी नहीं बताते हो दो जहाँ का फासला और सफ़र मुश्किल, फिर भी रोज़ यादों में चले आते हो खुली आँखों की सच्चाई कुछ भी हो , बंद आँखों में अक्सर मुस्कुराते हो लफ़्ज़ों में बुन लेती हूँ तुम्हारी यादों को, मुझे शायरी का दुशाला उड़ा जाते हो Google