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दो जहाँ का फासला

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किसी चेहरे में कभी किसी शेर में, कभी ख्वाब में मिल जाते हो मगर मिलके भी नहीं मिलते अब तुम, कहाँ से आते हो, किधर चले जाते हो?  सोचती हूँ तुम्हें तो उलझती चली जाती हूँ वो भी कुछ नहीं कहता, तुम भी नहीं बताते हो दो जहाँ का फासला और सफ़र मुश्किल, फिर भी रोज़ यादों में चले आते  हो खुली आँखों की सच्चाई कुछ भी हो , बंद आँखों में अक्सर मुस्कुराते हो  लफ़्ज़ों में बुन लेती हूँ तुम्हारी यादों को, मुझे शायरी का दुशाला उड़ा जाते हो  Google
अब मज़हबी बातों में दिल नहीं लगता,  तू दूर हो गया है या करीब आ गया है?

Good Morning :-)

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उठते ही वही दो-चार काम करता है, भूख लगे तो मीठा या नमकीन ढूँढता है, दुनिया के किसी कोने में हो या किसी जामे में  हर इंसान थक कर सो जाता है, प्यासे को पानी याद आता है, जब गुज़र जाए तो बचपन याद आता है, काइनात में कहीं बसेरा हो जाए, वो पहला घर याद आता है  आँखों में वही खारा पानी भर आता है, जब दिल का गम हद से बड़ जाता है कोई मज़हब हो या कोई ज़बान ख़ुशी में हर कोई मुस्कुराता है ज़ख्म ज़रा गहरा हो तो सुर्ख़ हो जाता है  आहट-ऐ-महबूब पे हर दिल ठिटक जाता है  फ़ारसी बोले या फ़्रांसिसी, धूप में ठहर जाए तो पसीने में भीग जाता है    मगर इंसान यह सब भूल जाता है  जब अपनों ही पे जोर आज़माता है, छोटे-छोटे बे-मतलब के फ़र्कों में कभी बेख़बरी तो कभी मक्कारी छिपाता है  बेवकूफी की हद से गुज़र जाता है, जब खुदा को अपनी जागीर समझ लेता है और वो है की फिर भी माफ़ कर देता है, हर दस्तक पे दरवाज़ा खोल देता है  समझदार को इशारा काफी होता है, जब जागो तभी सवेरा होता है   माफ़ी और प्यार भरे दिल से देखें  तो सिर्फ समानता का एहसास होता है  फोटो: गूगल