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ऐ दोस्त!

तू मेरी आँख में नहीं देखता, मेरे दिल में नहीं झांकता, मेरे कपड़ों में मेरा मज़हब ढूंढ़ता है, क्या हिन्दुस्तानियत की ख़ुश्बू नहीं पहचानता?? तू कौन है, कौन है तू, के मुस्लिम को हिन्दू का भाई नहीं मानता? कौन सा बीज और कहाँ की जड़ें हैं, के बापू-बिस्मिल की बातें नहीं मानता? थक रहा है झूठ बोलते-बोलते, सच्चाई से फिर भी हर पल है भागता, बस एक बार कर हिम्मत, ऐ दोस्त, इंसानियत-ओ-मोहब्बत से कर राब्ता! तेरी ये नफरत सारा देश जला रही है, तुझे मासूम बच्चों का वास्ता, राम को मंदिर में ही नहीं, मज़्जिद में भी देख, लौट आ, बड़े प्यार से तुझे खुदा है पुकारता!

बेबसी

ये कतई ज़रूरी नहीं के, मेरी नज़र जो देख रही है, तुझे दिखाई दे, मगर अब भी गर राबता है मुझसे तो, मेरी आखों में जो डर है, वो तो तुझे दिखाई दे. मज़हब में खुदा बड़ा है या इमारत? एहम वो है जो न आँख से दिखाई दे, खुदा में अमल बड़ा है या इबादत? मेरे अज़ीज़, जो ज़रूरी है चीज़, काश, वो तुझे दिखाई दे। वादी में गुलों के पीछे हैं हज़ारों कैदखाने, कैसे ये नाइंसाफी न तुझे दिखाई दे? क्या माँओं की गुज़ारिश न तुझे सुनाई दे, क्यों बच्चों की बेबसी न तुझे दिखाई दे?  गुफ्तुगू कहीं खो गयी, दलीलें ही रह गयी हैं, बातचीत का खाली खाता, क्या किसी को दिखाई दे? क्यों हिन्दुस्तानियत की आवाज़ बैठ रही है, क्या वजह किसी को न दिखाई दे?   तड़पती हूँ मादर-ए -वतन के लिए, वापसी की कोई राह न दिखाई दे, एक अदनी सी कलम और चार बातें, दिल में बस बेबस मोहब्बत-ए -सरज़मीं दिखाई दे! 

राज़-ए -दिल

मेरे राज़-ए -दिल सेहरा-ए -ज़िन्दगी में महफूज़ रहे, मैं रेत पे लिखती रही, हवाएं मिटाती रहीं।  कोई समझे भी क्यों मेरे दिल की बात, मैं ही तो हमेशा हसरतें-ए -दिल सबसे छिपाती रही। हर बात का एक क़द होता है, बौनी बात छिपाती रही, ऊँची बताती रही।    के कह भी दूँ और समझ भी न आये, कई बातें यूँ शायरी में सजाती रही।   एक आध राज़ इतने पेचीदा रहे, के खुद से भी कहने से हिचकिचाती रही। 

ऐ ग़मज़दा दिल

ऐ ग़मज़दा दिल, तू मेरा अपना है, चाहे हिन्दू का है या मुसलमा का है!  हर मज़हब का खुदा मुहब्बत है, ये अंदाज़-ए -हैवानियत कहाँ का है?  क्यों दबा रहे हैं आवाज़ें? ये काम तो तानाशाही का है!  हर आवाज़ बुलुंद हो, बेख़ौफ़ हो, यही तो निशाँ आज़ाद हिन्दुस्तां का है! अपने ही घरों में बंदी बना दिया? ये कौन सा तरीका है, ये निज़ाम कहाँ का है?  इतना भी क्या खींचना के डोर ही टूट जाए, उनकी रज़ा में ख़ुशी, मोहब्बत का सलीका है!  अँधेरा होता है तो फैलता जाता है, दिया बुझा न पाए ये झोंका जो हवा का है!  आ मिल कर करें वो ख़्वाब पूरा, जो पुर-अम्न जहाँ का है! ऐ ग़मज़दा दिल, तू मेरा अपना है, चाहे हिन्दू का है या मुसलमा का है! 

भूल न जाना राम!

जय श्री राम कह कह कर, भूल न जाना राम, दबंगई व हिंसा मत जोड़ना उस मर्यादा पुरषोत्तम के नाम! शांति, अहिंसा और भाईचारा, यही है भारतीयता की पहचान!  हत्या, क्रूरता, और  उद्दंडता में, क्यों छूमंतर हो रहा इंसान!  गाँधी के देश में रहने वालों, मत करो भारत बदनाम, जिस मिटटी में बढ़ी हुई मैं, यह बिनती उसी के नाम! जितनी नफरत भरी है दिल में, उससे ज़्यादा प्यार भरा है मन में, नज़र का फ़र्क़ है, नियत का फेर है, जो चाहे भर लो जीवन में!  रुको दो पल, सोच तो ज़रा, आख़िर, क्या है मक़सद ? जान लेना, प्रभुता पाना? है कहाँ तक जाना, और किस हद तक?

फ़ूले गाल

मेरे दिल के टुकड़े, जब तू गुस्से से फूल के गुप्पा हो जाता है, तो सीने में बड़ा दर्द होता है, हाँ, ये बात और है के तेरे फ़ूले गाल और भी प्यारे लगते हैं, मगर, कभी-कभी यह दर्द सोने नहीं देता, आदत ही नहीं है ना, तुझ से दर्द पाने की, बचपन से लेकर आजतक, बस प्यार ही मिला है तुझसे, तेरा बस चले तो मेरे रास्ते का एक-एक काँटा हटा दे, मगर गुड्डू, एक काँटा पैर में नहीं दिल फँस गया है, तेरे गुस्से का काँटा, बहुत दर्द होता है, वक़्त-बे-वक़्त तुझे सोचती हूँ, सबसे छुपाके आँसू पोछती हूँ, समझती हूँ तेरे गुस्से की वजह को, मगर हर चीज़ की एक उम्र होती है, तू दर्द छिपाता तो है, पर छिपा नहीं पाता, तेरा दर्द, चोरी-छिपे सात समंदर पार, यहाँ मेरे दिल तक आता है… बेटू, खोल दे अब मुठ्ठी, कर दे माफ़ सबको, माफ़ी की ताज़ी हवा में सब नाराज़गी बह जाने दे… तेरे हीरे से दिल में सिर्फ अब मोहब्बत रह जाने दे.… गुस्से से बनी दीवारें सब ढह जाने दे… तेरे गोल-गप्पे से गाल प्यारे लगते हैं, मगर तेरी हंसी और भी प्यारी लगती है!

सुनहरी सी लड़कियाँ!

यह कविता मेरी स्कूल और कॉलेज की दोस्तों के लिए है और शायद थोड़ी बहोत whatsapp को भी समर्पित है क्यूंकि मैं यहाँ अमेरिका में रहती हूँ मगर whatsapp के ज़रिये उनके साथ अक्सर जुड़ पाती हूँ! Thank you whatsapp for connecting me to my flavourful, gorgous, youthful, wise and compassionate friends!  ये सुनहरी सी  लड़कियाँ, इनकी आचारी बातें , मेरे बादलों से सलेटी दिन में , फुलकारी दुप्पट्टे सी लहराती हैं, मेरे बोरिंग से लेंटिल सूप में देसी घी  का  बंगार का लगा देतीं हैं ! इनकी तस्वीरें , इनकी बातें , मानो वक़्त  का  उड़नखटोला हों , मिंटो में कॉलेज पहुँचा देती हैं! whatsapp की पोस्ट इनकी , कभी यादों का जलूस ले आती हैं, कभी हंसी की फुआर, तो कभी ज़िन्दगी के गहरी सीख, मगर हर बार दिल बहला देती हैं! हाँ, एक और बात है मज़े की, इनके साथ वक़्त भी बाग़ी हो जाता है, ज़िन्दगी की शाम जब होने को है, जवानी की दोपहर लौट आ जाती है, वही अल्हड़ बातें, वही चटपटे चुटकुले, कुछ देर को दुनिया ही पलट जाती है! यह सुनहरी सी लड़कियाँ और इनकी अचारी बातें! 

आवाज़ें

१४ फरवरी को पुलवामा में सुरक्षाबलों पर हुए हमले के बाद, देश में कई लोगों ने अपनी-अपनी आवाज़ उठाई। कुछ लोगों की आवाज़ खूब सुनी गयी, कुछ की नहीं। तब से आजतक लगभग ५० जवानों की जानें चली गयीं, उनके परिवार के लोगों के दुःख का अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है। उम्मीद है सरकार उनकी मदद के लिए हर संभव कदम उठा रही है। मगर जब घर का बेटा, पिता, या पति जब इस तरह अचानक चला जाता है तो कोई मदद उस घाव को नहीं भर कर पाती। ईश्वर उन जवानों की आत्मा को शांति दे और उन परिवारों ढाँढस और हिम्मत दे। ऐसे में हम जो इस घृणित घटना से आहात हैं, गुस्से में हैं, समझ नहीं आता की क्या करें! कई लोगों ने पाकिस्तान से जंग की भी मांग की, उन लोगों से अपने अंग्रेजी के ब्लॉग पे एक निवेदन किया है जिसे यहाँ पढ़ा जा सकता है।  जंग लड़वाने वाले राजनेता होते हैं और लड़ने वाले सैनिक मगर जीते कोई भी, हारने वाले औरतें और बच्चे होते हैं दोनों तरफ! इस हादसे से जुड़े कई लोगों की राय सुनी और पढ़ी मगर जिनकी लोगों की राय बिलकुल भी न जान सकी, मेरा दिल उन्ही की तरफ दौड़ता रहा। और जितना उनके बारे में सोचा, दिल को कई आवाज़ें सुनाई देने लगीं :
मेरी हस्ती के दो पहलू, सुकून भी और जुस्तजू भी हूँ, हज़ारों अरमाँ लिए जिस्म हूँ, और हर लम्हे में मुतमईन रूह भी हूँ।  

पापा

तुम जहाँ भी हो, मेरा दिल कहता है, तुम यहाँ भी हो।   मुश्किलों की गर्मी में, मेरे आंसूं सुखाने वाली, ठंडी हवा भी हो।   मेरे इतने करीब, मगर मेरी ही तरह, शायद तन्हा भी हो।   ज़िन्दगी भर की सीख,  और तुम्हीं मेरा हर  रौशन लम्हा भी हो।   मेरे उसूल, मेरा नजरिया, मेरे दिल की सदा भी हो।   मेरा हौसला,  मेरी हर जीत की  अनकही वजह भी हो।   मेरे प्यारे पापा हो, और तुम्हीं उसका सबसे बड़ा तोफहा भी हो।