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नफरत की रोटी

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ये कविता हर उस उपद्रवी भाई के लिए है जो गुस्से में आकर सड़क पर उतर तो जाता है मगर असल में उसकी किसी से भी कोई दुश्मनी नहीं होती।  उस के घर में भी वही संघर्ष होते हैं जो उन लोगों के यहाँ होते हैं जिन्हे वो धर्म या जात  के नाम पर तबाह करने जाता है।  सच तो है की उस की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी उन्ही लोगों से ज़्यादा मिलती है बनिसबत उनसे जो उसे सड़कों पे उतरने को उकसाते हैं। वो अपने जीवन को दांव पर लगा कर, लोगों को मार कर या उन्हें बेघर कर के जब वापिस अपने घर पहुँचता है तो उसकी खुद की ज़िन्दगी वहीं की वहीँ खड़ी होती है, या फिर और बदतर हो चुकी होती है। अपने घर में माँ, पत्नी, बच्चे डरे हुए होते हैं, उसके नए रूप पर सवाल उठाते है /  हाँ, जिन्होंने उसे उकसाया होता है, उन्हें promotion मिल जाती है! मैं उन सारे जवानों से अपील करती हूँ की वो सोचें, अपने-अपने दिलों में झांके, क्या दूसरों बर्बाद करने के बाद वो खुश हैं, उनके घर वाले पहले से बेहतर हैं? अगर नहीं, तो दोस्त, ये रास्ता ठीक नहीं है, न तुम्हारे लिए, न तुम्हारे घरवालों के लिए।  जहाँ तक दुसरे धर्म वालों को सबक सिखाने की बात है , ये  सिर्फ मरन