मुझे समझ न सकेगा तू
बैसाखी की ज़रुरत पड़ती है मेरे होठों को अक्सर , मेरी आँखें न पढ़ सकेगा तो मुझे समझ न सकेगा तू.… लफ़्ज़ों में न बयाँ हो पाएगी कहानी मेरी, मेरी ख़ामोशी न सुन सकेगा तो मुझे समझ न सकेगा तू.… सिमटे हुए हैं एहसास-ओ-ख़्वाब मेरे अंदर, मेरे ज़हन की परतें न खोल सकेगा तो मुझे समझ न सकेगा तू.… न जता पाएँगे मेरे हौसले अपनी गुंजाईश, मेरे ज़ख्मों के निशां न गिन सकेगा तो मुझे समझ न सकेगा तू.… तोला गया है कई पैमानों में मेरा वजूद उसकी रेहमत न देख सकेगा तो मुझे समझ न सकेगा तू.…