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ऐ दोस्त!

तू मेरी आँख में नहीं देखता, मेरे दिल में नहीं झांकता, मेरे कपड़ों में मेरा मज़हब ढूंढ़ता है, क्या हिन्दुस्तानियत की ख़ुश्बू नहीं पहचानता?? तू कौन है, कौन है तू, के मुस्लिम को हिन्दू का भाई नहीं मानता? कौन सा बीज और कहाँ की जड़ें हैं, के बापू-बिस्मिल की बातें नहीं मानता? थक रहा है झूठ बोलते-बोलते, सच्चाई से फिर भी हर पल है भागता, बस एक बार कर हिम्मत, ऐ दोस्त, इंसानियत-ओ-मोहब्बत से कर राब्ता! तेरी ये नफरत सारा देश जला रही है, तुझे मासूम बच्चों का वास्ता, राम को मंदिर में ही नहीं, मज़्जिद में भी देख, लौट आ, बड़े प्यार से तुझे खुदा है पुकारता!