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आओ

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"चलो मिलके इन टुकड़ों में, सांझी बुनियाद ढूंढे, खुले आकाश के नीचे पुराने रिश्तों की वो हर एक याद ढूंढे  गलतियां-कमीयां आम हो गयीं  आओ, कुछ ख़ास ढूंढे सूखे पत्तों की तरह क्यूँ बिखर जाएं? शाख़ से तोड़ दें नाता  तो किधर जाएं? जो टूटने लगी है वो आस ढूंढे  एक-एक घर उठा के, स्नेह की सिलाई पे, बुन लेते हैं एक नया पहनावा माफ़ी और भलाई से नयी शुरुआत के लिये  एक नया लिबास ढूंढे फर्क ही नहीं होता हममें गर तो लज्ज़त कहाँ से आती? सरगम कैसे सजती, ये रंगत कहाँ से आती? चलो, इन्ही फ़र्कों में कहीं, एक से एहसास ढूंढे  एक दुसरे की ज़रूरतों को समझने की ज़रुरत है जो लाते है वापस, उन रास्तों पे  चलने की ज़रुरत है  आओ हम हंसी-ख़ुशी की पोटलियाँ  अपने आस-पास ढूंढे"  तस्वीरें: गूगल आभार