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और कोई बात नहीं...

हाँ, जानती हूँ चलते रहना ज़रूरी है, यह ज़िन्दगी सीधे-सपाट रास्ते ढूंढ नहीं पाती, बस और कोई बात नहीं … बाक़ियों के साथ मिलके चलना चाहती हूँ तो हूँ, मेरी सोच अक्सर मुझसे बहोत दूर है निकल जाती, बस और कोई बात नहीं … दुनिया-भर में घूमती-फ़िरती हूँ  मगर, कभी-कभी खुद से खुद का फ़ासला तय कर नहीं पाती, बस और कोई बात नहीं … सब कहते हैं बहोत बोलती हूँ मगर, दिल की गहराई को आवाज़ नहीं दे पाती, बस और कोई बात नहीं … यूँ तो बढ़ रही तादाद दुनिया में हर दिन, आजकल यह पहले जैसे बन्दे पैदा कर नहीं पाती, बस और कोई बात नहीं … जंग पहले भी हुआ करती थी मगर, अब यह नन्हे-मुन्नों को भी है ज़िबा कर जाती, बस और कोई बात नहीं … सब के लब पे अमन तो है मगर, अक्सर खुदर्ज़ी है बाज़ी मार जाती, बस और कोई बात नहीं … दिल चाहता है तोड़ दूँ नफरत की दिवारों को, मेरी कोशिशें एक ईंट भी गिरा नहीं पाती, बस और कोई बात नहीं … वो इस दुनिया को जन्नत बना तो सकता है मगर, फिर जन्नत की कोई ज़रुरत रह नहीं जाती, बस और कोई बात नहीं …