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ये यादें

इन यादों को  कहाँ रखूं? खुशियों में, या ग़मों में? ये ऐसी जगह पड़ी हैं, जहाँ कभी धुप पड़ती है, तो कभी घनी छाया, कभी सो जातीं हैं, रात की गहराई में, तो कभी मचल के उठ जातीं हैं, बारिश की बूंदों से, फिर याद आया के ये यादें  बोहोत दूर हैं मेरी पहुँच से, यह यूं ही पड़ी रहेंगी  इसी जगह, सोएंगी-जगेंगी इसी तरह, जब चाहे झकझोरेंगी मुझे, वक़्त-बेवक़्त इसी तरह।