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ख़ुशी

आज यूँ ही याद आई, वो दोपहर गर्मी की, स्कूल से थक कर, पसीने-पसीने घर लौटना, पँखे की हलकी-हलकी हवा में, ढंडा -ढंडा पानी पीना, आह, क्या ख़ुशी मिलती थी! और गेस करना मम्मी ने  अरहर की दाल बनाई है, या पापा ने तेहरी,  फिर गरम-गरम खाने में, ताज़ा-ताज़ा दही मिला कर, प्याज़ के साथ खाना, आह, ख़ुशी मिलती थी! पेट भर खाना खा के, पंखे के नीचे, आराम से लेट के, भाई से मांग के , फैंटम, चाचा चौधरी, चम्पक या फिर नंदन पड़ना, आह, क्या ख़ुशी मिलती थी! आज उम्र की इस पड़ाव में, दुनिया भर में घूम कर, एयर कंडीशन में रह कर, नाम और पैसा कमा कर भी, अपनी मर्ज़ी चला कर भी, वो ख़ुशी कहाँ जो, जो मम्मी-पापा के घर मिलती थी!

तेरा करम

ऐ खुदा, टूट-टूट कर भी खड़ा हूँ मैं, यह तेरा करम नहीं तो और क्या है?   इतने वार, इतने ज़ख्म, और मुस्कुरा हूँ मैं, यह तेरा करम नहीं तो और क्या है?   थक के चूर हूँ, फिर भी चल रहा हूँ मैं, यह तेरा करम नहीं तो और क्या है?   बेहाल हूँ  मगर आज भी दूसरों की दवा हूँ मैं, यह तेरा करम नहीं तो और क्या है?   दबा रहें है मेरी आवाज़ लेकिन आज़ाद सदा हूँ मैं, यह तेरा करम नहीं तो और क्या है?