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मिशन मोहब्बत!

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विदेशियों की बगल में हवाई जहाज़ की सीट पे आलती-पालती मार के बादलों से उलझते हुए हिंदी के अक्षरों में अपनी ज़िंदगी और उसके मकसद को सोचने का अलग ही मज़ा है... अक्सर सोचती हूँ, क्यों जाती हूँ अपनों को छोड़ कर बार बार? घर पर हर तरह का आराम है फिर क्यों निकल जाती हूँ गाँव-गाँव और शहर-शहर की ख़ाक छानने? वो तो भला हो घर वालों का जो जाने देते हैं और लगातार हर तरह से समर्थन करते हैं। नौकरी करते अब करीबन १५ साल हो गए, न तो कोई भारी बैंक अकाउंट बना पाई और न ही कोई खास संपत्ति। रेड क्रॉस की नौकरी वैसे भी पैसे के जुटाने के लिए नहीं करी, हाँ रोज़मर्रा की ज़रूरतें ज़रूर पूरी हो जातीं हैं।  वो तो भला हो दफ्तर वालों का जो रिटायरमेंट के लिए पैसे जमा करते हैं हर महीने जो शायद बेटे की आगे के पढ़ाई में काम आ जाएँ। भारी भरकम बैंक अकाउंट हो या न हो, दिल को इतनी तस्सली ज़रूर है की ज़िंदगी के आखिरी दिन तक गरम-गरम दाल-चावल मिल ही जाएंगे, और न भी मिले तो ठन्डे से भी काम चल ही जाएगा :-) मगर इस रास्ते पे दुआओं, प्यार और दोस्तों की कमी नहीं है।  अगर धन संपत्ति इन सब से आँकी जाती तो शायद में दुनिया सबसे अमीर लोगो