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परिचय

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दिल बैठ सा रहा है, ख़ुशी का मौका है, मगर कुछ टूट सा रहा है, अपनी मट्टी से रिश्ता कुछ छुट सा रहा है, क्या सचमुच मैं यह कर रही हूँ? क्या सचमुच यह हो रहा है? कब ज़िन्दगी यहाँ तक ले आई? वो पहला कदम जो  लिया था अपने आप को ढूंढने के लिए, यहाँ तक ले आया…  क्या पा लिया अपने को? क्या यह मेरा नया परिचय है? हाँ, शायद यही हूँ मैं, आज  एक हिंदुस्तानी अमेरिकन।   क्या हिंदुस्तान के लिए अब मेरे दिल में जगह कम हो जाएगी? क्या दिल्ली मेरे दिल से अब  कुछ दूर हो जाएगी? हाँ, ये पक्का है के, अमेरिका से रिश्तेदारी  और बड़ जाएगी।  मगर दिल्ली, तू मेरे दिल में  यूँ ही धड़का करेगी, मेरा कोई नया परिचय  यह नहीं झुटला सकता के मेरा जन्म भारत में हुआ।    मगर मेरी नियति में ही था, सरहदों को लांगना, मानसिक, सामजिक, भूगोलिक  सरहदों को लांगना, हाँ, यही मेरा बुलावा है, सरहदों के पार रिश्ते बनाने का, प्यार बांटने और प्यार पाने का।  मैं ईमानदार रहूंगी  धरती माँ की, इंसानियत की, चाहे दुनिया

दिल्ली

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Purana Qila, New Delhi (Photo courtesy Joe Prewitt) कब तक यूँ ही आवाज़ देती रहेगी? थकती नहीं मुझे बुला-बुला कर? यादों की डोर से खेंचती रहती है, तेरा दिल नहीं भरता मुझे रुला-रुला कर? है यह कैसा रिश्ता तुझसे? मट्टी का रिश्ता तुझसे, उम्रभर का रिश्ता तुझसे, मेरे वजूद, मेरी हस्ती का रिश्ता तुझसे। कहते हैं सब कुछ तो है यहाँ (USA), मगर कुल्फी वाले की घंटी नहीं बजती यहाँ, गली में गोलगप्पों की महफ़िल  भी  नहीं लगती यहाँ, ईद और दिवाली पर मिठाई नहीं बँटती यहाँ। चाँदनी चौक से चाँदी की बाली लानी है, मम्मी के हाथ की खिचड़ी खानी है, छोटे भाई के साथ बैठ के खानी है, फिर से जीनी  वो कहानी है… ऐसा नहीं है के यहाँ कुछ अच्छा नहीं लगता, बस, कुछ भी अपना नहीं लगता, गुज़र रहें हैं दिन मगर दिल अभी इतना नहीं लगता, लोग  अच्छे  हैं, दोस्त कहूँ जिसे कोई ऐसा नहीं लगता। सुना है तू भी बदल रही है, ख़ौफ़ -गर्दी बढ़ रही है , कहीं आबरू लूट रही है, पहले से भी ज्यादा महँगाई की मार पड़ रही है, कहीं न कहीं तू भी सिसक रही है…  सुन, अपनी सड़कों पे लाज को संभाल के रखना,