परिचय

दिल बैठ सा रहा है,
ख़ुशी का मौका है,
मगर कुछ टूट सा रहा है,
अपनी मट्टी से रिश्ता
कुछ छुट सा रहा है,
क्या सचमुच मैं यह कर रही हूँ?
क्या सचमुच यह हो रहा है?
कब ज़िन्दगी यहाँ तक ले आई?
वो पहला कदम जो 
लिया था अपने आप को ढूंढने के लिए,
यहाँ तक ले आया… 
क्या पा लिया अपने को?
क्या यह मेरा नया परिचय है?
हाँ, शायद यही हूँ मैं, आज 
एक हिंदुस्तानी अमेरिकन। 
 क्या हिंदुस्तान के लिए अब
मेरे दिल में जगह कम हो जाएगी?
क्या दिल्ली मेरे दिल से अब 
कुछ दूर हो जाएगी?
हाँ, ये पक्का है के,
अमेरिका से रिश्तेदारी 
और बड़ जाएगी। 
मगर दिल्ली, तू मेरे दिल में 
यूँ ही धड़का करेगी,
मेरा कोई नया परिचय 
यह नहीं झुटला सकता
के मेरा जन्म भारत में हुआ।   
मगर मेरी नियति में ही था,
सरहदों को लांगना,
मानसिक, सामजिक, भूगोलिक 
सरहदों को लांगना,
हाँ, यही मेरा बुलावा है,
सरहदों के पार रिश्ते बनाने का,
प्यार बांटने और प्यार पाने का। 
मैं ईमानदार रहूंगी 
धरती माँ की,
इंसानियत की,
चाहे दुनिया के किसी कोने में हूँ,
हाँ, अपनी शपत की भी,
जो आज यहाँ के संविधान के लिए ली

मगर भाषा में, खाने में, 
अपनी कविताओं में, शायरी में,
हिंदुस्तान को जीऊँगी।  
जब जब मैं अपने 
सांवले तन पे साड़ी लपेटूंगी,
हिंदुस्तानी ही कहलाऊंगी। 

टिप्पणियाँ

हृदय में तो हिन्दुस्तान रहेगा ही, सुन्दर पंक्तियाँ।
Rajendra kumar ने कहा…
अतिसुन्दर ,स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
सुन्दर पंक्तियाँ
...स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें..!!!
vandana ने कहा…
बहुत ही सुन्दर।
Bharat Bhushan ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Bharat Bhushan ने कहा…
अमेरिकन नागरिक बनने पर बधाई. सीमाएँ लाँघना कम ही लोगों को नसीब होता है. कविता बहुत सुंदर बन पड़ी है.

लंबी बीमारी के बाद अब कुछ सक्रिय हो रहा हूँ.

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अब बस हुआ!!

राज़-ए -दिल

वसुधैव कुटुम्बकम्