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ये मेरा खुदा

ये मेरा खुदा, सड़कों पे मिल जाता है, तो कभी बादलों के पीछे से कहीं, देखके मुस्कुराता है!   हर किसी से मुहोब्बत करने को  दिल में तूफ़ान मचाता है, ग़रीब, मजबूर, मज़लूमों, के चेहरों में नज़र आता है!   इसे कहीं दिल से पुकार लो, वहीँ मिल जाता है, कितने भी लोग खड़े हों आगे, सीधा मेरे पास आता है!   न लाइन का लफड़ा, न चंदे का चक्कर चलता है, मैं ही सबसे ख़ास हूँ उसकी, ऐसे फील कराता है!   कुछ भी खाया-पिया हो, मस्त गले लगाता है, सारी गलतियाँ माफ़ करके, फिर से नया बनाता है!   ये मेरा खुदा, अपना वजूद खुद ही संभालता है. इंसान लड़ मरें इसके लिए, यह तो बिलकुल नहीं चाहता है!    ये मेरा खुदा, सबको पास बुलाता है, ये मेरा खुदा है तेरा खुदा भी, ये समझाना चाहता है। 

सारा आसमाँ हूँ!

आजकल हर तरफ नफरत का बोलबाला है।  कहीं देख लें, हिंसा का कोई न कोई चेहरा नज़र आ ही जाएगा।  हैवानियत अलग-अलग लिबास में नाच रही है।  कहीं मज़हब, कहीं रंग भेद, कहीं पैसा तो कहीं सियासत! और लोग गुटों में बँट गए हैं।  दुसरे का दर्द महसूस कम होने लगा है, अपनों की ग़लतियाँ कम नज़र आने लगीं हैं।  और हाँ, अपने लोगों की परिभाषा भी जैसे बदल रही है।  पहले दोस्त, पड़ोसी, साथ में  काम  करने वाले, रिश्तेदार कोई भी अपनों की गिनती में आता था।  आज कल अक्सर मज़हब और राजनितिक राय न मिले तो आप अपने नहीं रहते। और ये हाल सिर्फ इंडिया में ही नहीं बल्कि और देशों में भी दिख रहा है... पूरा विश्व जैसे अलग-अलग गुटों में बंटता जा रहा है... लोग मिलते हैं तो फेसबुक पर, वास्तव में मिलते हैं तो आँखें नहीं मिला पाते और जो आँखें मिल जाएं तो दिल नहीं मिलते। मगर सब ऐसे नहीं हैं। जिनकी आँख उससे लड़ चुकी है, वो फ़र्क़ नहीं कर पाते :-) वो तो उनके कान में अपनी बात फूँक के, अपना जादू चला चुका!   मैं बौद्ध, सिख, इसाई  हिन्दू और मुसलमाँ हूँ, दिल में बस जाता हूँ, वैसे सारा आसमाँ हूँ!  है मोहब्बत मेरी जागीर, फ़िक़

इंतज़ार-ऐ-असर-ऐ-दुआ में हूँ

मायूसी और फिर लड़ने की जुस्तजू, दर्द और उम्मीद के बीच सफर में हूँ, दायरा सिमटा है बस, बंदी नहीं हूँ।   थक जाता हूँ तो रो लेता हूँ, उसकी मोहब्बत याद कर मुस्कुराता हूँ, दरारें पड़ीं हैं, अभी टूटा नहीं हूँ।   सवाल, सलाह, नसीहत, और इल्ज़ाम, सुन रहा हूँ हर बात, हर कलाम, ख़ामोश हूँ, पर लाजवाब नहीं हूँ।   डर के अँधेरे में है चराग़-ऐ -ईमान, सर झुका है, हाथ देखते हैं आसमान, बस इंतज़ार-ऐ-असर-ऐ-दुआ में हूँ।