संदेश

दिसंबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Peace Calls: From Dreams to Death in Delhi

Peace Calls: From Dreams to Death in Delhi : Dreams, hope and aspiration followed by rape, assault and eventual death. We don't cry for every death. There are billions of people in thi...

बस यूँ ही

चित्र
बहोत कुछ जो दिल के बहोत करीब रहा, मुठ्ठी से रेत की तरह बस यूँ ही रिसता रहा, कदम बढ़ते रहे, कभी तेज़, कभी भारी, ज़ख्म कभी भरता रहा, कभी रिसता  रहा  मुड़ के देखा तो बहोत था जिसे सीने से लगाना चाहा, चाह सुबकती रही, सीना भी रिसता रहा  कभी ज़िद्द, कभी बचपना, कभी मजबूरी, कभी ताबेदारी, फ़ैसलों की शाखों से अंजाम-ए-ज़िन्दगी रिसता रहा  खूबसूरत है मुस्कराहट तेरी, कहके ज़माना हँसाता रहा, तन्हाई की गहराईयों में ग़म-ए-दिल कहीं रिसता रहा  काश बाँध तोड़ के बह जाता गुबार, पर नहीं, रात-ओ-दिन महीन सुराखों से बैरी रिसता रहा  हर पड़ाव पे मेरी हस्ती का कुछ सामान छुट गया, सफ़र के दौरान मेरा वजूद कहीं-कहीं रिसता  रहा   लिए दिल को हाथों में चलते रहे हम भी,  उँगलियों के बीच दरारों से लहू भले ही रिसता रहा  बेशक, वो कादिर रहा है मददगार हर कदम पे,  थामे रहा वो हाथ मेरा, हौसला जब भी रिसता  रहा 
रचतें हैं मज़हब मेरे नाम पे किस्म-किस्म के, पूछें तो मुझसे मेरा कोई मज़हब नहीं