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मार्च, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दिल

जब दिल दुखी होता है, तो बड़ा बुरा लगता है, दिल करता है दिल को हाथ में लेके सहलाऊँ, प्यार से कहूँ, 'सब्र कर' दर्द हल्का हो जाएगा  फिर धीरे-धीरे थपकाऊँ, सुला दूँ थोड़ी देर अपनी हथेली पर, मगर सीने में नहीं सोता  तो हथेली पे सो पाएगा, पता नहीं, शायद कोई मरहम हो जो लगा दूँ इसे,  बड़ा अँधेरा है इन दिनों इसमें रौशनी में ले जाऊं इसे,  ले जाऊं  उसके पास, रख दूँ उसके पैरों में, कहूँ, छुले इसे,  पूछूं, यह दर्द मुझसे तो कम नहीं होता, तू कर पाएगा? फिर याद आया उसने कहा था "मोहब्बत के पेड़ पर दर्द के फल लगते हैं मेरे दिल में भी बहुत दर्द है, इस जहाँ का,  हर इन्सां का, जब भी कोई आंसू कहीं गिरता है, मेरा दिल भी रोता है" अब सोच रही हूँ, पहले अपना दिल सहलाऊँ, या उसका?

ज़िन्दगी साँस लेती है

पिछले दिनों इतनी तबाही देखी की दिल दहल गया, कुदरत ने अपना तांडव एक बार फिर दिखाया और मौत ज़िन्दगी पे ग़ालिब होती नज़र आई, मगर ज़िन्दगी तो उस की अमानत है, वो है तो ज़िन्दगी है... यानि हमेशा के लिए...  तबाही के बाद भी ज़िन्दगी साँस लेती है, ज़ख़्मी ज़मीं को फिर जीने की दुहाई देती है, नाउम्मीदी की मुट्ठी से उम्मीद को हौले से आगोश में लेती है, "तू अगर सच है तो मैं भी एक सच हूँ", मौत को धीमे से बता देती है  कभी कोपलों में, कभी किलकारियों में, हलके से मुस्कुरा देती है  "चल बस कर अब, माफ़ कर दे" यूँ ख़फा कुदरत को मना लेती है  कहती है, "खुदा है तो मैं हूँ, उसकी हस्ती ही तो मुझको ज़िन्दगी देती है"

सभी को होली की रंग बिरंगी शुभकामनायें!

शायद आराम आये...

कर दूँ अर्ज़-ऐ-हाल, शायद आराम आये बदलूँ सम्त-ऐ-ख़याल, शायद आराम आये  छिपा दूँ कहीं  किताब-ऐ-सवाल, शायद आराम आये भुला दूँ सूरत-ऐ-हाल, शायद आराम आये  खो दूँ कहीं दर्द-ऐ-मलाल, शायद आराम आये  पा लूँ रहम तेरा ओ बादशाह-ऐ-जमाल, शायाद आराम आये  

ज़ख़्मी हूँ, बीमार हूँ मैं

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ये कविता उन करोड़ों लोगों के लिए लिखी है, जो दिन प्रति दिन अपने पे किये अत्याचारों या उनके ज़ख्मों को जी रहे हैं. ये लोग रोज़मर्रा ज़िन्दगी में दिखते तो हैं पर दिखते नहीं.... आज भी यौन शोषण परदे के पीछे रहता है, गरीब की बेकद्री को ज़िन्दगी का एक हिस्सा समझा जाता है... जात-पात के नाम पर कभी सत्ता के नाम पर कभी विद्रोह के नाम पर हर रोज़ सैंकड़ों मर रहे हैं, औरतें विधवा हो रही हैं, बच्चे यतीम हो रहे हैं... जब तक हम ये सोचेंगे की हाल इतना भी बुरा नहीं है तब तक कुछ करने के लिए जज़्बा नहीं जगेगा...  ज़ख़्मी हूँ,  बीमार हूँ मैं, अपने ही अंशों की बदकारियों  की शिकार हूँ मैं  गरिमा, गैरत, इज्ज़त, आबरू और हक़ है मेरी पहचान  मगर हर वार कमज़ोर के अधिकार पर ज़ख़्मी करता है मेरी पहचान   इंसान के इंसान बनने का  एक लम्बा इंतज़ार हूँ मैं  ऐ औरत, निंदा तेरा गहना, बलात्कार है तेरा तोफहा, अक्सर दिन दहाड़े,  होती है तेरी हस्ती तबाह  कभी लगता है मैं, मैं नहीं एक बेरहम बाज़ार हूँ मैं  मुफ़लिस, चाहे  आदमी हो या औरत जानवर से भी  गयी गुज़री ह

नारी

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अंतरराष्ट्रीय   महिला दिवस के अवसर पर कुछ पंक्तियाँ , नारीत्व को समर्पित.... तुझी से ताकत मिलती है, तू ही प्यार सिखाती है तू सुन्दरता की परिभाषा, तू ही जग सुंदर बनाती है अपनी जड़ो से दूर होकर, अनजाना आँगन अपनाती है इश्वर की पहली सहायक है, तू उसकी दुनिया बढाती है  तेरे आलिंगन में सुख ही सुख है, ममता व स्नेह से भरी तेरी छाती है जिद्द पर आ जाए तो ज्वाला है, कभी भरी डाली सी झुक जाती है  कितने रिश्ते, कितने रूप, क्या-क्या किरदार निभाती है  अकेले में ग़म से दोस्ती, महफ़िल में मुस्काती है   यूँ तो हर जवाब होता है तेरे पास, कभी खुद ही सवाल बन जाती है  तेरी अपनी भी ज़रूरतें हैं, बस, अक्सर ये भूल जाती है  उनकी छाया बनी रहे सदा, इसकर अपना कद छिपाती है   Photos: Courtesy Google

ख्याल हूँ

कोई कोई ख़याल ठहर जाया करता है, कहता है लफ़्ज़ों में पिरोदे मुझको नज़्म बन जाऊं तो लाफ़ानी हो जाऊं  गुमनामी में न खो दे मुझको  दिलों को छू सकूँ हौले से, इस तरह से कह दे मुझको  दर्द है मुझमें मगर उम्मीद भी है, मुस्कुरा के कह दे मुझको सरहद-ओ-दिवार न रोक सके हरगिज़, अमन का आँचल उड़ा दे मुझको ताज़ा कर दूँ, जिस ज़हन से गुज़र जाऊं, ठंडी हवा सा बना दे मुझको कोई पैगाम बन जाऊं उसका, यूँ मोहब्बत से भर दे मुझको  कहता है तू भी तो एक ख्याल है उसका, अपने से अलग न कर दे मुझको  मेरा ख्याल मुझसे कहता है की मैं खुद खुदा एक का ख्याल हूँ....  ये ख्याल सी ज़िन्दगी उसकी खिदमत-ओ-तारीफ़ में लिखी एक नज़्म बन जाए, यही दुआ है....
भरोसे के काबिल न मेरी किस्मत  है   न तेरी फितरत ,  ज़िन्दगी यूँ भी कट ही जाएगी, सलामत रहे लुफ्त-ए-हसरत