संदेश

फ़रवरी, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

और सफर चलता रहा…

इस रचना में अपने करियर की कुछ झलकियाँ प्रस्तुत करी हैं. इन यादों को शब्दोँ में संजोना ज़रूरी है इस से पहले के ये खो जाएँ। छोटी-छोटी पँक्तियों में कई तरह के अनुभव छुपे हैं। १२ साल पहले गुजरात के भुज में भूकंप पीड़ितों के साथ काम करने के लिए रेड क्रॉस के साथ जुड़ी। तब यह नहीं जानती थी की बारह साल और दुनिया के १०० से ज़्यादा शहरों में काम करने के बाद भी में रेड क्रॉस के साथ जुड़ी रहूँगी। इस दौरान कई प्राकृतिक आपदाओं के अलावा कश्मीर और नक्सली इलाकों में भी काम किया। इन सब अनुभवों में सबसे मुश्किल था २००४ में  चेन्नई के कुम्भकोणम में उन माँओं के साथ काम करना जिनके बच्चे स्कूल में आग से जल के ख़त्म हो गए थे। उस समय मेरा बेटा भी लगभग उसी उम्र का था जिस उम्र के बच्चे उस भयंकर आग में जल गए थे। हर माँ में मैं अपने आप को देखती थी। कोई भी त्रासदी क्यों न हो, महिलाओं और बच्चों पर इसका असर और भी अधिक होता है। कश्मीर की 'half widows' की दुखभरी दास्ताँ youtube पे देखि जा सकती है। इंसान के कई रंग देखे, दर्द के कई रूप देखे मगर जीवन को हमेशा मौत से ज़्यादा ताकतवर देखा। इंसान के गिर के उठने के