ज़ख़्मी हूँ, बीमार हूँ मैं

ये कविता उन करोड़ों लोगों के लिए लिखी है, जो दिन प्रति दिन अपने पे किये अत्याचारों या उनके ज़ख्मों को जी रहे हैं. ये लोग रोज़मर्रा ज़िन्दगी में दिखते तो हैं पर दिखते नहीं.... आज भी यौन शोषण परदे के पीछे रहता है, गरीब की बेकद्री को ज़िन्दगी का एक हिस्सा समझा जाता है... जात-पात के नाम पर कभी सत्ता के नाम पर कभी विद्रोह के नाम पर हर रोज़ सैंकड़ों मर रहे हैं, औरतें विधवा हो रही हैं, बच्चे यतीम हो रहे हैं...

जब तक हम ये सोचेंगे की हाल इतना भी बुरा नहीं है तब तक कुछ करने के लिए जज़्बा नहीं जगेगा... 

ज़ख़्मी हूँ, 
बीमार हूँ मैं,
अपने ही अंशों की बदकारियों 
की शिकार हूँ मैं 

गरिमा, गैरत, इज्ज़त, आबरू
और हक़ है मेरी पहचान 
मगर हर वार कमज़ोर के अधिकार पर
ज़ख़्मी करता है मेरी पहचान  
इंसान के इंसान बनने का 
एक लम्बा इंतज़ार हूँ मैं 

ऐ औरत, निंदा तेरा गहना,
बलात्कार है तेरा तोफहा,
अक्सर दिन दहाड़े, 
होती है तेरी हस्ती तबाह 
कभी लगता है मैं, मैं नहीं
एक बेरहम बाज़ार हूँ मैं 


मुफ़लिस, चाहे 
आदमी हो या औरत
जानवर से भी 
गयी गुज़री है उसकी इज्ज़त 
गरीब की हर आह में छिपी
अपनी ही एक हार हूँ मैं 


सत्ता का लालच छिपाते हैं
उसूलों के रूमाल में
क्रांति कोई भी हो, सरकार कोई हो 
मरता है कमज़ोर हर हाल में 
बेइंसाफी, बेईमानी और ज़ुल्म से
घायल और बेज़ार हूँ मैं 

जानता है मेरी हालत  
मगर चुप रहता है
कभी आता है मदद को,
कभी बस देखता है 
ये क्या अदा है, कौनसा अंदाज़ है?
पूछती यही बार-बार हूँ मैं 


हाँ, बीमार हूँ,
घायल और बेज़ार हूँ मैं,
नींद से जागो, बचालो मुझे,
ढेहता हुआ दयार हूँ मैं,
मैं ख़त्म हो गयी तो तुम भी न रहोगे,
 मुझे पहचानो, इंसानियत हूँ मैं!

Photos Courtesy Google

टिप्पणियाँ

हाँ, बीमार हूँ,
घायल और बेज़ार हूँ मैं,
नींद से जागो, बचालो मुझे,
ढेहता हुआ दयार हूँ मैं,
मैं ख़त्म हो गयी तो तुम भी न रहोगे,
मुझे पहचानो, इंसानियत हूँ मैं!
bheetar ka aakrosh rudan bhi hai, virakti bhi hai, chikaar bhi hai...
आज़ का दिन बेहतरीन कविता का दिन है
बेहतरीन
पद्म सिंह ने कहा…
गिरीश भाई बकरी दिखा रहे हैं.... बकरी की अम्मा खैर माना रही है.... :)

हा हा हा ... सारे बच्चे मोटे ताज़े हैं...:)
आज इंसानियत है ही कहाँ ? बहुत संवेदनशील प्रस्तुति
बेहतरीन कविता।

दुखी हूँ,नारी वहीं हूँ
हृदय से हारी नहीं हूँ,
vandana gupta ने कहा…
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत अच्छी कविता. पर औरत इतनी लाचार भी नहीं.
Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…
Fact #31: At least 60 million girls who would otherwise be expected to be alive are "missing" from various populations, mostly in Asia, as a result of sex-selective abortions, infanticide or neglect. (UN Study On The Status of Women, Year 2000)

Fact #32: Globally, at least one in three women and girls is beaten or sexually abused in her lifetime. (UN Commission on the Status of Women, 2/28/00)

http://www.feminist.com/antiviolence/facts.html#global
JOBS WORLD ने कहा…
हां बीमार हूं...शायद दुनिया से बेजार हूं....बहुत शानदार रचना।
mridula pradhan ने कहा…
dard ki pukar.......shayad koi sunkar aaye bachne ke liye....aur aapki lekhni muskura uthe...
Udan Tashtari ने कहा…
बहुत उम्दा भावपूर्ण रचना..
udaya veer singh ने कहा…
maine aaj pahali bar aapko padha , laga der ho gayi . aapke srijan se main abhibhut ho gaya ,vastav men aapka
sahitya -srijan prashanshniya hai . fallo kiya aapko . shadhuvad .
M VERMA ने कहा…
मैं ख़त्म हो गयी तो तुम भी न रहोगे,
मुझे पहचानो, इंसानियत हूँ मैं!
बेहतरीन अभिव्यक्ति
चित्र भी एक समानांतर कविता कह रहे है.
Patali-The-Village ने कहा…
बहुत बेहतरीन भावपूर्ण रचना| धन्यवाद|
अजय कुमार ने कहा…
आज इंसानियत ऐसे ही रो रही है
Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…
संवेदनाओं से भरी बहुत मार्मिक कविता...
Kunwar Kusumesh ने कहा…
मैं ख़त्म हो गयी तो तुम भी न रहोगे,
मुझे पहचानो, इंसानियत हूँ मैं!

GOOD CLIMAX.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.uchcharan.com/
यह मानवता की चीख है ,जिसे आपने स्वर दिया !
www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…
भावनाओं को व्यक्त करती तस्वीरों के साथ साथ चुटीले शब्दों के माध्यम से बहुत ही गहरी संवेदना व्यक्त की है अंजना जी| बधाई|
जानता है मेरी हालत
मगर चुप रहता है
कभी आता है मदद को,
कभी बस देखता है
ये क्या अदा है, कौनसा अंदाज़ है?
पूछती यही बार-बार हूँ मैं ...

सच कहा है सीसे लोगों की मदद को कोई नही आता ... बस नाम के लिए कभी कभी कोई फ़ॉर्मेलिटी कर जाता है ....
बहुत ही मार्मिक ... सत्य लिखा है ..
Kailash Sharma ने कहा…
हाँ, बीमार हूँ,
घायल और बेज़ार हूँ मैं,
नींद से जागो, बचालो मुझे,
ढेहता हुआ दयार हूँ मैं,
मैं ख़त्म हो गयी तो तुम भी न रहोगे,
मुझे पहचानो, इंसानियत हूँ मैं!

बहुत सटीक, मार्मिक और सशक्त रचना..आज सच में इंसानियत बहुत बीमार है..बहुत सुन्दर रचना
बहुत संवेदनशील प्रस्तुति
मार्मिक ... सत्य लिखा है ..
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,

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