ज़िन्दगी साँस लेती है

पिछले दिनों इतनी तबाही देखी की दिल दहल गया, कुदरत ने अपना तांडव एक बार फिर दिखाया और मौत ज़िन्दगी पे ग़ालिब होती नज़र आई, मगर ज़िन्दगी तो उस की अमानत है, वो है तो ज़िन्दगी है... यानि हमेशा के लिए... 


तबाही के बाद भी ज़िन्दगी साँस लेती है,
ज़ख़्मी ज़मीं को फिर जीने की दुहाई देती है,

नाउम्मीदी की मुट्ठी से उम्मीद को
हौले से आगोश में लेती है,

"तू अगर सच है तो मैं भी एक सच हूँ",
मौत को धीमे से बता देती है 

कभी कोपलों में, कभी किलकारियों में,
हलके से मुस्कुरा देती है 

"चल बस कर अब, माफ़ कर दे"
यूँ ख़फा कुदरत को मना लेती है 

कहती है, "खुदा है तो मैं हूँ,
उसकी हस्ती ही तो मुझको ज़िन्दगी देती है"

टिप्पणियाँ

पद्म सिंह ने कहा…
बहुत बढ़िया ... बधाई
Rakesh Kumar ने कहा…
वाह! शानदार प्रेरणापूर्ण अभिव्यक्ति,खुदा की भक्ति को पोषित करती हुई आत्मविश्वास जगाती
और यह कहती कि
मगर ज़िन्दगी तो उस की अमानत है, वो है तो ज़िन्दगी है... यानि हमेशा के लिए...
तबाही के बाद भी ज़िन्दगी साँस लेती है
ज़ख़्मी ज़मीं को फिर जीने की दुहाई देती है,
नाउम्मीदी की मुट्ठी से उम्मीद को
हौले से आगोश में लेती है,
"तू अगर सच है तो मैं भी एक सच हूँ",
मौत को धीमे से बता देती है
कभी कोपलों में, कभी किलकारियों में,
हलके से मुस्कुरा देती है
"चल बस कर अब, माफ़ कर दे"
यूँ ख़फा कुदरत को मना लेती है
केवल राम ने कहा…
"तू अगर सच है तो मैं भी एक सच हूँ",
मौत को धीमे से बता देती है
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कहती है, "खुदा है तो मैं हूँ,
उसकी हस्ती ही तो मुझको ज़िन्दगी देती है"
आदरणीय अंजना जी
आपने बहुत सुन्दरता से जीवन की वास्तविकता को वयान किया है ..आपकी कविता बहुत सार्थक है ...आपका आभार
कभी कोपलों में, कभी किलकारियों में,
हलके से मुस्कुरा देती है

जी हाँ सच कहा जिन्दगी तो जिंदगी है, हलके से मुस्कुरा ही देती है... अच्छा सन्देश है ...आपका आभार
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
जब आदमी यह भूल जाता है कि वह अपनी मर्ज़ी से नहीं बल्कि इस कायनात के मालिक की मर्ज़ी से पैदा हुआ है और उसे वह अपने कर्मों का हिसाब देने के लिए ज़िम्मेदार है तो उसकी इच्छाएं असंतुलित हो जाती हैं । अब वह जैसे जैसे अपनी ये असंतुलित इच्छाएं पूरी करने की कोशिश करता है तो उसका जीवन भी असंतुलित होने लगता है और जब दुनिया के ज़्यादातर लोगों का कर्म असंतुलित हो जाता है तो वे जिन चीजों को इस्तेमाल करते हैं , उनमें भी वे हद से गुज़र जाते हैं । इस तरह चीज़ों में और पर्यावरण में जो संतुलन इनके बनाने वाले ने क़ायम किया है , वह नष्ट हो जाता है और तरह तरह की बीमारियाँ, जंग और क़ुदरती तबाहियाँ मानव जाति को घेर कर नष्ट करने लगती हैं । यह असंतुलन तब तक दूर नहीं हो सकता जब तक कि मानव जाति अपने मालिक को अपना हाकिम न माने और उसके ख़िलाफ अपनी बग़ावत के अमल न छोड़ दे।
इस पर्यावरण में ही नहीं बल्कि हरेक चीज़ में फिर से संतुलन क़ायम करने का तरीक़ा इसके सिवा कुछ और नहीं है कि अब सामूहिक रूप से हरेक चीज़ को केवल अपने रब की नीति के अनुसार ही बरता जाय।
दयालु पालनहार अपनी वाणी क़ुरआन में यही बताता है और सुरक्षा देने के लिए अपने संरक्षण में बुलाता है ।
आईये , प्रभु के प्रति समर्पण कीजिए , अपने कल्याण के लिए।
ज़लज़लों और क़ुदरती तबाहियों के बारे में अल्लाह की नीति The punishment
"तू अगर सच है तो मैं भी एक सच हूँ",
मौत को धीमे से बता देती है

बहुत सुन्दर ...यूँ ही ज़िंदगी चलती रहती है ..
प्रकृति को तो मनाना ही होगा।
तबाही के बाद भी ज़िन्दगी साँस लेती है,
ज़ख़्मी ज़मीं को फिर जीने की दुहाई देती है,

सुंदर अभिव्यक्ति.
Bharat Bhushan ने कहा…
जीवन और जीने में आस्था जगाती पोस्ट. गुड़िया की ग्रेट पोस्ट.
बहुत बढ़िया ... बधाई
mridula pradhan ने कहा…
कहती है, "खुदा है तो मैं हूँ,
उसकी हस्ती ही तो मुझको ज़िन्दगी देती है"
bahut sundar.
Udan Tashtari ने कहा…
तबाही के बाद भी ज़िन्दगी साँस लेती है....बहुत गहरी बात कही.

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