अब बस हुआ!!

बहुत सुसंगत शब्द नहीं है मेरे पास पर कहना चाहती हूँ.... अगर नहीं कहूँगी तो आँसू नहीं थमेंगे ...  


इंसानों की यह भद्दी तस्वीर पहले भी देखी है,
औरत की आबरू लुटते पहले भी देखी  है,
आज फिर दिल क्यूँ  टूट रहा है,
जब इंसानियत की अर्थी पहले भी देखी है?

आदमी की ताकत और हैसियत 
औरत की योनि में गिरती पहले भी देखी  है,
औरत भी औरत को सताती, 
कुचलती,  और हराती पहले भी देखी है!

अभागी लाशों पर राजनीति, और 
बलात्कारियों को शह पहले भी देखी  है,
आज फिर दिल क्यूँ  टूट रहा है,
जब हैवानियत की जय-जयकार पहले भी देखी है!  

काश मैं उन बहनों से मिल सकती, उन्हें गले लगा के रो सकती, उन्हें कह सकती के:

प्यारी बहन, याद रख तेरी आबरू तेरे जिस्म से बहुत गहरी है,
सभ्य तुझे उसी इज़्ज़त से देखेंगे, जैसे पहले भी देखा है,
तू फिर आँख मिलाएगी इस समाज से, 
जिसकी वहशी आँखों में तूने पहले भी देखा है! 

दोस्तों, कब तक सहेंगे हम ये सब,
कब तक कहेंगे, यह हालत तो पहले भी देखी है,
हाँ, बलात्कार को जंग का हथियार पहले भी देखा है, 
मगर हमने अपनी एकता ताकत भी तो पहले भी देखी  है!

आओ, मिल जाएं हम सब,
फिर लाएं वही एकता, जो हमने पहले भी देखी है,
उसी तीव्रता से तंत्र से जवाबदेही मांगे,
जो निर्भया के संग नाइंसाफ़ी के वक़्त भी देखी  है!


मणिपुर में जो हो रहा है और होने दिया जा रहा वो हैवानियत का नंगा नाच बिना सियासती ताकतों के हो नहीं सकता! ऐसा नहीं है के यह पहले नहीं हुआ पर इतने लम्बे समय, इतनी बे-शरमाई और बर्बरता से शायद नहीं हुआ! हमें अपनी आँखें खोलनी ही होंगी, अपनी आवाज़ उठानी ही होगी। ग़लत को ग़लत कहना ही होगा! अब बस हुआ!! 

टिप्पणियाँ

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (23-07-2023) को    "आशाओं के द्वार"  (चर्चा अंक-4673)   पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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