वसुधैव कुटुम्बकम्

आजकल इतना ज़्यादा हिन्दू-मुस्लमान हो रहा है की सोचा एक कविता लिखूँ  उन सीखों पर जो बचपन में हमें घर पर, स्कूल में, खेल के वक़्त, सब जगह बार-बार बताई जातीं थी।  प्रेम और भाईचारा सिखा-सिखा कर बड़ा किया और हमारे बड़े छोड़ गए इस नयी दुनिया में, जहाँ नफरत और विभाजन बोल-बाला लगता है। इस नए वातावरण में तो हमें ठीक से जीना भी नहीं आता, अक्सर गिर जाते हैं, बहक जाते हैं, भड़क जाते हैं! फिर याद आता है, यह हम नहीं हैं, हमें कुछ और बनाया जा रहा है!!!  कभी-कभी उन बातों को याद रखना भी मुश्किल हो जाता है, कभी-कभी लगता है वो बचपन का हिंदुस्तान ही हाथ से फिसलता जा रहा है! इसलिए सोचा, आज फिर 'Back to Basics' पे जाया  जाये.... 
Photo: Approx 18 yrs ago when I was working in Tamil Nadu



हाँ, कोई हिन्दू है तो कोई मुसलमान है,
पर हम सारे पहले इंसान है।  
हाँ, नफरत भी मुमकिन है, मेरे दोस्त,
मगर प्यार में ही छिपा भगवान है।  

इतिहास को याद कर,
उसे तोड़-मरोड़ कर,
समझ, के बताते हैं तुझे वो सच्चाई तोड़ कर,
तेरा आज क्यों अतीत से हैरान-परेशान है? 

ईश्वर को याद भक्ति और प्रेम से करना,
उसके नाम को धमकाने में प्रयोग ना करना,
वो बहकायें-भड़काएँ, तो भी मना करना,
याद रखना, प्रेम ही सबसे बलवान है 

मेहनत करना और सवाल पूछने की भी हिम्मत रखना,
अपने मन और हक़ की बात को भी सामने रखना,
छोटे-बड़े का, ख़ासकर स्त्री का आदर रखना,
सफल जीवन का यही सार है, यही ज्ञान है।  

पड़ोस की आग तुझ तक पहुँच न जाए,
बुझा देना इससे पहले के तू भी जल जाए ,

                                               'वसुधैव कुटुम्बकम् ' हम कभी भूल न पाएं!

                                               याद है न, उसके आगे तो हम सब एक समान हैं! 





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