जब दिन थक कर रात की आगोश में सो जाता है,
मेरे ख्यालों के जुगनू यहाँ वहां फुदकने लगते हैं… 
जिन्हें पकड़ पाती हूँ, सजा लेती हूँ शायरी की बोतल में
इस तरह के बसीरत*-ए-हयात बन के चमकने लगते हैं…


बसीरत* = Insight

टिप्पणियाँ

बस यूँ ही ख्यालों को संजोते रहिये ..
बहुत खूब ..
Bharat Bhushan ने कहा…
ख्यालों को पकड़ना पड़ता है. ख़ूब कहा है.
शायरी की बोतल में जो डाले थे जुगनू
उनकी चमक से रोशन हैं यादें


बहुत खूब
majaal ने कहा…
बहुत अच्छे, अब तक तो हम सुरेन्द्र शर्मा साहब के ही चार लायनी के हुनर से वाकिफ थे, पर यहाँ भी ख़ासा अच्छा प्रयोग किया है आपने ! शायरी की बोतल शीर्षक भी अच्छा रहेगा !

लिखते रहिये :)
प्रयास जारी रहे तो हम सब भी अच्छा पड़ते रहेंगे.

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