वो उधार की बात करता है,
कैसे उधार दूँ उसे जिसका क़र्ज़ अभी चुकाया नहीं

वो क़र्ज़ जिसमें बखुशी डूबी है ज़िन्दगी,
वो देता गया मुहोब्बत और कभी जताया नहीं




टिप्पणियाँ

M VERMA ने कहा…
बहुत खूब .. वाह
Bharat Bhushan ने कहा…
बहुत सुंदर पंक्तियाँ जो सहज ही मन को छू लेती हैं.
Pallavi saxena ने कहा…
बहुत खूब.....
ANULATA RAJ NAIR ने कहा…
बहुत सुन्दर.....
मोहब्बत के क़र्ज़ में डूबी ज़िन्दगी..बा-खुशी.
वाह!!!

अनु
Rakesh Kumar ने कहा…
यही तो खासियत है उसकी.
मुहोब्बत करना आ जाए हमें और
उसकी तरह मुहोब्बत बाँट सके हम
बिना जतलाए,तो उसे खुद हमारा ही
कर्जदार बनने में भी कोई गुरेज नही.
उसके उधार में डूबना ही उसको कर्जदार
बनाना है.पर अपनी 'मै' 'मैं' के समक्ष
कहाँ डूब पाते हैं हम.

श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है

यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितिम्
यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतसः

अकृतज्ञ (अहसान फरामोश) या अकृतात्मन जिन्होंने अपना अंत:करण शुद्ध नही किया है) ऐसे अज्ञानीजन यत्न करने पर भी उसको नही जान पाते.
उसके कर्जे में स्वयं को डूबा न मानकर हम अभी अहसान फरामोश ही तो हैं.


मेरे ब्लॉग पर दर्शन दीजियेगा,अंजना जी.

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