अपने हिस्से का नूर
कुछ दिनों पहले अपने अंग्रेजी ब्लॉग पर एक लेख के द्वारा मैंने कुछ प्रशन उठाये थे, जिनका उत्तर भूषण सर ने बड़ी खूबी से दिया, जिसे आप यहाँ देख सकते हैं. उनके उसी उत्तर से प्रेरित होकर ये कुछ पंक्तियाँ लिखीं हैं, इस उम्मीद के साथ के आम आदमी के पास एक बार फिर ये सन्देश पहुंचे की वो ही ख़ास आदमी है और उसे किसी चालाक सियार के बहकावे में आने कोई ज़रुरत नहीं है. उसके सीधेपन में ही इंसानियत और खुदाई की रिहाइश है.
ऐ इंसान, थम के टटोल तो ज़रा,
देख, वो रौशनी, वो खुशबु, तुझी में है कहीं
वो अँधेरे जो आते हैं उजाले की शकल में,
तेरे दिल की आवाज़ दबा ना दें कहीं
सियासत और ताकत जिनकी चाहत है,
मासूमों का लहू बहाना उनकी आदत है,
भूल जातें हैं की उनसे बड़ा भी एक है,
यह दुनिया जिसकी अमानत है
अभी भी वक़्त है सजदे में सर झुका दें यहीं
ऐ खुदा, आम आदमी को बना दे ख़ास,
तेरा हर बन्दा अपनी अजमत पे कर सके नाज़,
हर एक लिये है अपने हिस्से का नूर ,
खोल दे ये दिलवालों पे राज़
महसूस करें तुझे दिल में, औरों पीछे भागें नहीं
आओ, उस नूर के उजाले में ढूंढे रास्ता अपना,
हमदिली जिस डगर हो, वो बने रास्ता अपना,
सख्त कलामी बन जाए जिस गली की रिवायत,
अदब से हम बदल लें रास्ता अपना
के कतरा-ऐ-नूर-ऐ-दिल बुझ ना जाए कहीं
रास्ता एहम है तो चाल भी एहम है,
संभल के पाँओ रखिये की हर कदम एहम है,
मोहब्बत लाए करीब जिसके, नफरत करे दूर,
मुझे तो मेरा वो हमदम एहम है
अब करे गुमराह ऐसी कोई शै नहीं
टिप्पणियाँ
तेरा हर बन्दा अपनी अजमत पे कर सके नाज़,
हर एक लिये है अपने हिस्से का नूर ,
खोल दे ये दिलवालों पे राज़
महसूस करें तुझे दिल में, औरों पीछे भागें नहीं...
ज़ज्बात से भरी बहुत ख़ूबसूरत रचना..बहुत प्रेरक...
मासूमों का लहू बहाना उनकी आदत है,
भूल जातें हैं की उनसे बड़ा भी एक है,
यह दुनिया जिसकी अमानत है
अभी भी वक़्त है सजदे में सर झुका दें यहीं
एक दम सटीक उत्तर
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
Happy Republic Day.........Jai HIND
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ|
wah.bahot sunder.
मासूमों का लहू बहाना उनकी आदत है,
बेहतरीन....हार्दिक बधाई..
संभल के पाँओ रखिये की हर कदम एहम है,
मोहब्बत लाए करीब जिसके, नफरत करे दूर,
मुझे तो मेरा वो हमदम एहम है
अब करे गुमराह ऐसी कोई शै नहीं
सशक्त रचना
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ.
तेरा हर बन्दा अपनी अजमत पे कर सके नाज़..
Beautiful !
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हमदिली जिस डगर हो, वो बने रास्ता अपना,
सख्त कलामी बन जाए जिस गली की रिवायत,
अदब से हम बदल लें रास्ता अपना
के कतरा-ऐ-नूर-ऐ-दिल बुझ ना जाए कहीं
waah, bahut badhiyaa
हमदिली जिस डगर हो, वो बने रास्ता अपना,
सख्त कलामी बन जाए जिस गली की रिवायत,
अदब से हम बदल लें रास्ता अपना
के कतरा-ऐ-नूर-ऐ-दिल बुझ ना जाए कहीं
वाह! बहुत ही खूबसूरत भाव भरे हैं।
रचना बहुत अच्छी लगी |
लाज़मी है दोस्त रास्ता एहम है तो चाल भी एहम ही होगी !
संभल के तो चलना ही पड़ेगा वर्ना भुगतना भी हमे ही पड़ेगा !
तेरा हर बन्दा अपनी अज़मत पे कर सके नाज़,
हर एक लिये है अपने हिस्से का नूर,
खोल दे ये दिलवालों पे राज़
महसूस करें तुझे दिल में, औरों के पीछे भागें नहीं'
सच जान कर यदि मैं प्रार्थना में झुक जाता हूँ तो मेरी वही हालत होती है जो गुड़िया आपकी हुई है. फिर औरों के पीछे भागने की आवश्यकता नहीं रहती.
मासूमों का लहू बहाना उनकी आदत है,
भूल जातें हैं की उनसे बड़ा भी एक है,
यह दुनिया जिसकी अमानत है
अभी भी वक़्त है सजदे में सर झुका दें यहीं
वाह .. सच है इंसान खुद के सामने सब भूल जाता है .. उसकी हस्ती नही कबूल करता ... समय रहते माना अच्छा है ...
तेरा हर बन्दा अपनी अजमत पे कर सके नाज़,
हर एक लिये है अपने हिस्से का नूर ,
खोल दे ये दिलवालों पे राज़
महसूस करें तुझे दिल में, औरों पीछे भागें नहीं
आमीन...
सादर,
डोरोथी.