इंसानियत की ज़मानत की जाए
कश्मीर मसला हो या इजराइल-फिलिस्तीन की खुनी जंग या फिर इराक और अफ़ग़ानिस्तान में चल रहे युद्ध या फिर अफ्रीका में नरसंहार, हर तरफ दर्द ही दर्द है. क्यूँ कोई इनका हल नहीं ढूंढ पाता? या फिर हम ढूंढना ही नहीं चाहते? और सबसे बड़ी बात की हम खुद कितने ज़िम्मेदार हैं इन मसलों को बढावा देने के लिये या अपनी कौम, अपने धर्म, अपनी जिद्द के आगे दूसरों के जज़बातों को ना समझने के लिये?
क्या ये सच नहीं की हममे से एक-एक ज़िम्मेदार है अपने चारों तरफ के माहोल के लिये? हममें से कितने लोग अपने आसपास अमन की बहाली की कोशिश करते हैं, अमन और प्यार की मिसाल बनने की कोशिश करते हैं? हमारी छोटी-छोटी दुनिया ही तो बड़ी दुनिया बनाती हैं. यह दुनिया बेचारी तो हम इंसानों से ही अपनी पहचान बनाती है
दुनिया की क्या औकात है
जो उससे शिकायत की जाए,
की जिनसे बगावत की जाए
खुद ही मुसलसल दर्द देतें हैं खुद को,
इस फ़िराक में के उनके दर्द में मुनाफिअत की जाए
कभी रोके ज़ख्म-ऐ-माज़ी, कभी झिझक तो कभी गुरूर
कैसे इब्तिदा-ऐ-अमन की वकालत की जाए
इतना जज़्बा के बदल जाता है वेह्शत में,
ऐसे में, किस तरह दरख्वास्त-ऐ-मोहब्बत की जाए?
इतनी मोहब्बत दे दिलों में, ऐ खुदा
के कम से कम इंसानियत की ज़मानत की जाए
क्यूँ सरहदों के मसले सुलझते नहीं?
कैसे सुकून से घरों में रहने की आदत की जाए?
एक टीस सी उठती है मेरे दिल में इंसानों की हरकतों पे
कोई बताए, इन्सां होकर कैसे इंसानों से अदावत की जाए?
खुदा भी करता होगा इंतज़ार उस वक़्त का,
के अंजाम-ऐ-तमाशा हो और क़यामत की जाए
कुर्बानी ही ज़रूरी है तो यह ही सही,
नफरत, खौफ, और खुद-पसंदी की शाहादत की जाए
Photos: Google
टिप्पणियाँ
आदमी को
जानवर से
आदमी
बन जाने में
बरसों लगे.
लेकिन
अब भी
उसे
आदमी से
जानवर
बन जाने में
लगता है
एक पल.
http://dramanainital.blogspot.com/
के अंजाम-ऐ-तमाशा हो और क़यामत की जाए
बहुत सुन्दर भावो को शब्दो मे पिरोया है।
दिगम्बर नासवा जी ने सभी कुछ कह दिया है अपनी टिप्पणी मे।
नमस्कार !
..... बहुत खूब लिखा आपने
काश इंसानियत समझ सके ..
शिकवा आग से और बारूद से शिकायत की जाए
कुर्बानी ही ज़रूरी है यह ही सही,
नफरत, खौफ, और खुद-पसंदी की शाहादत की जाए
bahut hi marmik abhivyakti..
chitron ka sanyojan bahut sateek..
वाकई में....
आदाब ! आपके लिए नया साल अच्छा गुज़रे ऐसी हम कामना करते हैं। आप ने अच्छी पोस्ट बनाई है , सराहना पड़ेगा ,
सचमुच !
आपकी जिज्ञासाओं को शांत करेगी
प्यारी मां
बड़ी दर्द भरी है ये दास्तान !!
यह सच है कि आज इंसान दुखी परेशान और आतंकित है लेकिन उसे दुख देने वाला भी कोई और नहीं है बल्कि खुद इंसान ही है ।
आज इंसान दूसरों के हिस्से की खुशियां भी महज अपने लिए समेट लेना चाहता है । यही छीना झपटी सारे फ़साद की जड़ है ।
एक दूसरे के हक को पहचानौ और उन्हें अदा करो अमन चैन रहेगा । जो अदा न करे उसे व्यवस्था दंड दे ।
लेकिन जब व्यवस्था संभालने वाले ज़ालिमों को दंड न देकर ख़ुद पक्षपात करें तो अमन चैन ग़ारत हो जाता है । आज के राजनेता ऐसे ही हैं । देश को आज तक किसी आतंकवादी से इतना नुक़्सान नहीं पहुंचा जितना कि इन नेताओं से पहुंच रहा है । ये नेता देश की जनता का विश्वास देश की व्यवस्था से उठा रहे हैं ।
बचेंगे ये ख़ुद भी नहीं ।
आप ने जो बात कही है उसे अगर ढंग से जान लिया जाए तो भारत के विभिन्न समुदायों का विरोधाभास भी मिट सकता है और अब तो अलग अलग दर्जनों चीजों की पूजा करने वाले भी कहने लगे हैं कि सब चीजों का मालिक एक है ।
अब मैं चाहता हूं कि सही ग़लत के Standard scale को भी मान लिया जाना चाहिए ।
ये लिंक्स अलग से वास्ते दर्शन-पठन आपके नेत्राभिलाषी हैं।
http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2010/12/virtual-communalism.html
मेरे दिल के हर दरवाज़े से आपका स्वागत है।
आदाब ! आपके लिए नया साल अच्छा गुज़रे ऐसी हम कामना करते हैं। आप ने अच्छी पोस्ट बनाई है , सराहना पड़ेगा ,
सचमुच !
आपकी जिज्ञासाओं को शांत करेगी
प्यारी मां
बड़ी दर्द भरी है ये दास्तान !!
यह सच है कि आज इंसान दुखी परेशान और आतंकित है लेकिन उसे दुख देने वाला भी कोई और नहीं है बल्कि खुद इंसान ही है ।
आज इंसान दूसरों के हिस्से की खुशियां भी महज अपने लिए समेट लेना चाहता है । यही छीना झपटी सारे फ़साद की जड़ है ।
एक दूसरे के हक को पहचानौ और उन्हें अदा करो अमन चैन रहेगा । जो अदा न करे उसे व्यवस्था दंड दे ।
लेकिन जब व्यवस्था संभालने वाले ज़ालिमों को दंड न देकर ख़ुद पक्षपात करें तो अमन चैन ग़ारत हो जाता है । आज के राजनेता ऐसे ही हैं । देश को आज तक किसी आतंकवादी से इतना नुक़्सान नहीं पहुंचा जितना कि इन नेताओं से पहुंच रहा है । ये नेता देश की जनता का विश्वास देश की व्यवस्था से उठा रहे हैं ।
बचेंगे ये ख़ुद भी नहीं ।
आप ने जो बात कही है उसे अगर ढंग से जान लिया जाए तो भारत के विभिन्न समुदायों का विरोधाभास भी मिट सकता है और अब तो अलग अलग दर्जनों चीजों की पूजा करने वाले भी कहने लगे हैं कि सब चीजों का मालिक एक है ।
अब मैं चाहता हूं कि सही ग़लत के Standard scale को भी मान लिया जाना चाहिए ।
ये लिंक्स अलग से वास्ते दर्शन-पठन आपके नेत्राभिलाषी हैं।
http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2010/12/virtual-communalism.html
मेरे दिल के हर दरवाज़े से आपका स्वागत है।
Aapki ghazal insaniyat ke tut kar bikharate mulyon ke dard ka aaina hai jisamen aaj ke halaat saaf saaf nazar aa rahe hain !
Shukriya,
-Gyanchand Marmagya
"Vadi-e-waqt mein mitti ki saba jaise hain(They are like the fragrance of soil in the valley of time)
Dard ke saaye muflis ki dua jaise hain"(The shadows of pain are like the blessings of a poor person)...... adxt2007@gmail.com
के कम से कम इंसानियत की ज़मानत की जाए
superb
आदमी को
जानवर से
आदमी
बन जाने में
बरसों लगे.
परन्तु अफ़सोस आदमी अब भी उसी मार्ग पर अग्रसर है .....बहुत प्रेरणादायक पोस्ट