खट्टी-मिट्ठी गुड़िया
जानती हूँ की उपरी खूबसूरती फानी है,
फिर भी शीशे में खुद को निहारती हूँ
जहाँ दास्ताँ-ए-ज़िन्दगी लिखी जा रही है,
चेहरे की उन लकीरों से घबराती हूँ
पता है के यह हीरे-मोती नहीं हैं मेरी दौलत,
मगर फिर भी इनसे दिल लगाती हूँ
न काली हूँ, न गोरी हूँ,
अपने भूरेपन पे इतराती हूँ
तमाम गुनाहों के बाद भी जो जिंदा है,
उस मासूमियत पे चकराती हूँ
सच्चाई है बुनियाद मेरी ज़िन्दगी की, मगर
कभी-कभी मुस्कराहट में उसे छिपाती हूँ
हार जाती हूँ लाखों-करोड़ों के दुःख के आगे,
किसी एक दिल को छुलूँ तो मुस्कुराती हूँ
लफ़्ज़ों में बुन लेती हूँ दिल की गहराइयों को,
यूँ इज़हार-ऐ-एहसास कर पाती हूँ
न मुकम्मल मैं हूँ न ज़िन्दगी है,
उसके रहम-ओ--करम पे जीती जाती हूँ
टिप्पणियाँ
किसी एक दिल को छुलूँ तो मुस्कुराती हूँ
that song suits it...
"auro ka gham dekha to main apna gham bhool gaya, duniya me kitna gam hai......."
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
यूँ इज़हार-ऐ-एहसास कर पाती हूँ
wah....behad achchi lagi.
बहुत समय बाद आपने हम पर कृपा की है.
आपकी बेहतरीन अभिव्यक्ति को हृदय से नमन.
उस मासूमियत पे चकराती हूँ
मुझे भी आपकी मासूमियत चक्कर में डाल रही है अंजना जी.आपकी मासूमियत पर दिल कुर्बां.
काश! प्रभु सभी को ऐसी मासूमियत दें.
उस मासूमियत पे चकराती हूँ
बस यही बनी रहनी चाहिये…………बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
यूँ इज़हार-ऐ-एहसास कर पाती हूँ
खुबसूरत शेर मुबारक हो ..
किसी एक दिल को छुलूँ तो मुस्कुराती हूँ
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...यही ज़ज्बा बना रहे...
बहुत सुंदर...
अच्छा प्रयास्।
"तमाम गुनाहों के बाद भी जो जिंदा है,
उस मासूमियत पे चकराती हूँ"
मैंने ऐसे पढ़ा है
"तमाम गुनाहों के बाद भी जो जिंदा है,
उस कूटस्थ पे चकराती हूँ"
मगर फिर भी इनसे दिल लगाती हूँ ..
ये तो इंसानी फ़ितरत है ... ये शेर याद आ गया ..
मौत का एक दिन मुऐयन है ..
नींद क्यों रात भर नही आती ...
यूँ इज़हार-ऐ-एहसास कर पाती हूँ
har pankti me ek naya falsafa chhupa hai .sarthak rachna .badhai .
---------
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
हार जाती हूँ लाखों-करोड़ों के दुःख के आगे,
किसी एक दिल को छुलूँ तो मुस्कुराती हूँ
-बहुत उम्दा!!!