दिल्ली
थकती नहीं मुझे बुला-बुला कर?
यादों की डोर से खेंचती रहती है,
तेरा दिल नहीं भरता मुझे रुला-रुला कर?
है यह कैसा रिश्ता तुझसे?
मट्टी का रिश्ता तुझसे,
उम्रभर का रिश्ता तुझसे,
मेरे वजूद, मेरी हस्ती का रिश्ता तुझसे।
कहते हैं सब कुछ तो है यहाँ (USA),
मगर कुल्फी वाले की घंटी नहीं बजती यहाँ,
गली में गोलगप्पों की महफ़िल भी नहीं लगती यहाँ,
ईद और दिवाली पर मिठाई नहीं बँटती यहाँ।
चाँदनी चौक से चाँदी की बाली लानी है,
मम्मी के हाथ की खिचड़ी खानी है,
छोटे भाई के साथ बैठ के खानी है,
फिर से जीनी वो कहानी है…
चाँदनी चौक से चाँदी की बाली लानी है,
मम्मी के हाथ की खिचड़ी खानी है,
छोटे भाई के साथ बैठ के खानी है,
फिर से जीनी वो कहानी है…
ऐसा नहीं है के यहाँ कुछ अच्छा नहीं लगता,
बस, कुछ भी अपना नहीं लगता,
गुज़र रहें हैं दिन मगर दिल अभी इतना नहीं लगता,
लोग अच्छे हैं, दोस्त कहूँ जिसे कोई ऐसा नहीं लगता।
सुना है तू भी बदल रही है,
ख़ौफ़ -गर्दी बढ़ रही है , कहीं आबरू लूट रही है,
पहले से भी ज्यादा महँगाई की मार पड़ रही है,
कहीं न कहीं तू भी सिसक रही है…
सुन, अपनी सड़कों पे लाज को संभाल के रखना,
अँधेरे में भी औरत की गैरत की हिफाज़त करना,
हर बुरी नज़र से बचाए रखना,
माँ की तरह अपने आंचल में छिपाए रखना,
दिल्ली, तू अपना भी ख़याल रखना ,
अपनी गलियों को दुश्मन से बचा के रखना,
अभी तुझे पुराने जख्मों को भी है भरना,
रूह-ए-इतेहाद सीने से लगाए रखना।
हर मज़हब को अपनाया है तूने,
मुख्तलिफ राहों पे इन्सां को खुदा से मिलाया है तूने,
हर फ़र्क को गले से लगाया है तूने,
यूँ ही नहीं सबके दिल में घर बनाया है तूने।
टिप्पणियाँ
अनु
बहुत खुबसूरत रचना ,दिल को भा गया
latest post नेताजी सुनिए !!!
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!