गाँधी जी पूछ रहें हैं
गाँधी जी पूछ रहें हैं हमसे, कितनी दूर भागोगे मुझसे? कब तक ढूँढोगे दुश्मन यहाँ-वहाँ, जब वो छिपा है खुद में? यह हिन्दू, वो मुसलमां, कर लो चाहे जितना, रोटी, नौकरी, इज़्ज़त, शौहरत, पा लोगे क्या आगे-ए -नफरत में? इंसान को कब तक, देखोगे मज़हब की हद तक? अरे, अब बस भी करो, अब सब्र ख़त्म हो रहा है मुझमें! क्या बचा है अब हमारा प्यार, माफ़ी, भाईचारा? सब हो गया है तेरा-मेरा, बस उलझे हैं तुझमें-मुझमें? सोचा था बढ़ जाओगे आगे, दुनिया के सब देशों से आगे, मगर, आज भी सन अड़तालीस जैसे, गोली दाग रहे हो मुझमें? गाँधी जी पूछ रहें हैं हमसे, कितनी दूर भागोगे मुझसे? कब तक ढूँढोगे दुश्मन यहाँ-वहाँ, जब वो छिपा है खुद में?