मैं रुक ही नहीं सकती!
बढ़ने दो मुझे, मैं रुक ही नहीं सकती, किसी भी बेड़ी में बंध ही नहीं सकती, वक़्त कम है, मैं थम ही नहीं सकती। उड़ने दो मुझे, दुनिया के हर कोने में सन्देश ले जाना है मुझे, प्यार और माफ़ी वाला पैगाम फैलाना है मुझे, इंसानियत घायल है, हर इंसान को याद दिलाना है मुझे। बहने दो मुझे, इन पत्थरों और पहाड़ों को पार करना है मुझे, अभी बहुत सारी ज़मीन को सींचना है मुझे, उसी में तर-बतर हूँ, और एक दिन उसी में मिल जाना है मुझे। जीने दो मुझे, दायरों में घुटन होती है मुझे, हवा की तरह हर घर की खिड़की से गुज़रना है मुझे, दोस्ती और अमन की खुशबू बन बिखरना है मुझे। बढ़ने दो मुझे, उड़ने दो मुझे, बहने दो मुझे, जीने दो मुझे, मैं रुक ही नहीं सकती...!