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सौहार्द बन गया खतरा ?

ज़ुबानें काट डाली हैं, आँखों को फोड़ डाला है, जीना है तो हर एक को  पीना भक्ति का प्याला है! हाथ बाँध दिए हैं, कलम तोड़ दी है, ज़ालिम ने प्रजातंत्र की, कमर तोड़ दी है! चेहरे का मेकअप बदल, क्या इंसान बदला जा सकता है? दो चार स्मारक बदल, क्या इतिहास बदला जा सकता है?  सौहार्द खतरा बन गया, सवाल अपमान बन गया, नेता खुद देश बन गया, क्या आज का हिंदुस्तान बन गया?  हाँ, हिन्दू खतरे में है, अगर वो निर्णय से परे है, यदि तू गाँधी है, लंकेश है, लोया है, हाँ तू खतरे में है! 

मम्मी, तुम हो!

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नया साल सभी को मुबारक हो!  मगर इस नए साल की खुशियां कुछ अधूरी हैं क्यूंकि अब सैकड़ों लोगों की दुनिया ही अधूरी हो गयी है! हमारा परिवार भी उन सैकड़ों लोगों में से है, जिन्होंने अपने प्रियजनों को Covid में खो दिया। पिछले साल अप्रैल/मई में हमने अपनी मम्मी और बड़े मामू को C ovid ke Delta varient के प्रहार में खो दिया। जब तक हमें पता लगा की मम्मी को covid है, बहुत देर हो चुकी थी. कुछ ही घंटों में मम्मी हमें छोड़ के चली गयीं. एक बात की तस्सली है के उन्हें बहुत दर्द नहीं सहना पड़ा और उनके इलाज में किसी चीज़ की कमी नहीं हुई जैसा बहुतों के साथ उस समय  हुआ... मगर हम कुछ कह नहीं पाए एक दूसरे से... जैसे वह एकदम ग़ायब हो गयीं..! और मैं यहाँ US में अपने छोटे भाई का साथ भी न दे सकी, उसने अकेले सब कुछ किया... उस वक़्त मुझे नहीं पता मम्मी को खो देने का दर्द ज़्यादा बड़ा था, या छोटे भाई को अकेले सारे रस्म-रिवाज़ करते हुए zoom पे देखना ज़्यादा दर्दनाक था....  माँ का होना हमारे लिए बहुत ज़रूरी होता है, और उसका चला जाना भी हमारे जीवन के लिए बहुत शक्तिशाली होता है। मैं यह मानती हूँ की माँ जाकर भी हम से दूर नहीं जाती, इसल