संदेश

2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कुछ सवाल

चित्र
सीरिया, इराक हो या फिलिस्तीन का मामला, या फिर कश्मीर का मसला हो, सालों से लोग बस तड़प रहें हैं. छोटे-छोटे बच्चे ज़ुल्म और जंग में बड़े हो रहे हैं। कैसा बचपना और कैसा भविष्य? कुछ बच्चे अब जवान हो गए हैं. क्या सोचते होंगे यह दुनिया के बारे में? अब तो यह जानते होंगे के इन्हें अपने अधिकार नहीं मिले, यह जानते होंगे के जहाँ बाक़ी बच्चे अमन और शांति के बीच स्कूल जाते हैं, बागों में खेलते हैं, दलेरी से किसी से भी मिलते हैं वहां ये और इनके परिवार के लोग रोज़-रोज़ मर मर के जीते हैं. इनमें  से कितनो ने अपने बाबा को क़त्ल होते देखा होगा, कितनो ने माँ की आबरू को उजड़ते देखा होगा. इनमें से कितने दुखी होते होंगे, या कौन-कौन गुस्से से भर जाते होंगे? इन देशों की सरकारें इन बच्चों और जवानों के लिए क्या कर रही हैं? और औरतों  की तो क्या बात की जाए...! इनके दुखों की तो कोई गिनती ही नहीं है। कभी घर से बेघर, कभी पति के होते पति से दूर या फिर विधवा का जीवन, बच्चों और बुज़र्गों का पालन-पोषण, कभी मानसिक शोषण, कभी बलात्कार,  कभी भुकमरी और कभी एक ही औरत को ये सब बर्दाश्त करना पड़ता है। न जाने किस-किस तरह के बल

ठहरो ज़रा

मेरी दिल्ली फिर जल रही है, यहाँ दूर बैठे मेरा दिल बैठा जा रहा है यह भारत माँ का लाडला, माँ की बर्बादी क्यों गा रहा है? वो न्याय के लिए लड़ने वाला, न्याय को ही क्यों हरा रहा है? दुनिया की ख़बर सुनाने वाला आज, पिट कर खुद ख़बरों में आ रहा है? ये पोलिस वाला चुप क्यों है, जनता को नहीं, तो यह किसे बचा रहा है? और इस सब तमाशे के बीच, वहां सीमा पर जवान अपनी जान गँवा रहा है! रुक जाओ टटोलो खुद को, शायद तुम्हारे अंदर एक इंसान मरा जा रहा है.... ठहरो ज़रा, थम के सोचो तो, ऐसे में भारत का भविष्य कहाँ जा रहा है? समझदार हो, अमन से करो जतन , देखो, आने वाला कल तुम्हे बुला रहा है।

जाने दो

चित्र
क्यों दिल के चक्कर में पड़ते हो, क्यों किस्मत से लड़ते हो? जाने दो... फिर हिंदुस्तान को तरसोगे , फिर यादों के जंगल में भटकोगे, जाने दो, क्यों दिल के चक्कर में पड़ते हो? क्यों वक़्त अपना ज़ाया करते हो, क्यों वही पुरानी ख़्वाहिश करते हो जाने दो, क्यों दिल के चक्कर में पड़ते हो? बारिश में फिर अपनी मट्टी की खुशबू ढूँढोगे, बूँदों की आड़ में खुद भी धीरे-धीरे बरसोगे, जाने दो, क्यों दिल के चक्कर में पड़ते हो? फिर खलेगा गैर-ज़बान में बतियाना, जज़्बातों का अंग्रेजी से आँख चुराना, जाने दो, क्यों दिल के चक्कर में पड़ते हो? फिर माँ की रसोई बुलाएगी, फिर पिज़्ज़ा की शकल रुलाएगी, जाने दो, क्यों दिल के चक्कर में पड़ते हो? हथेली में भाई की उँगलियाँ याद आएँगी, खाली-पीली फिर आँखें भर आएँगी, जाने दो, क्यों दिल के चक्कर में पड़ते हो? वो दिल्ली जो बस्ती है यादों में, अब नहीं है, वो जादू, वो दौर, वो लम्हें, अब नहीं हैं, जाने दो, क्यों दिल के चक्कर में पड़ते हो? हाँ, यादों की धूल आज भी सड़कों पे पड़ी होगी, हर मोड़ पे माज़ी की

मेरी दुआ

चित्र
2016 आप सभी के लिए मंगलमय हो और ईश्वर से मेरी यही प्राथना है हम सबको अपनी उपस्थिति से भर दे।  आप जो भी हैं, जैसे भी हैं, किसी भी धर्म के मानने वाले हैं, वो आपको बहुत प्रेम करता है। पूरे विश्वास के साथ उस की ऒर देखें, वो आपको अपनी शान्ति से भर देगा। खुश रहें और खुश रखें! :-) :-) तुझे सोचूं, तुझे देखूं, तुझे ढूढूं, तुझे पाऊँ। तू मंज़िल हो हर क़दम की हर मुकाम पे तुझे पाऊँ। होंगे और भी खूबसूरत मज़मून, मैं बस तुझे गुनगुनाऊँ। तेरी रहमत हो जाए तो, मैं भी तेरे काम आऊँ। अमन की कोशिशों में, मैं भी हिस्सा बन पाऊँ।   फोटो: गूगल  लाया है जिसके लिए मुझे यहाँ, उस मकसद को पूरा कर जाऊँ। कुछ और नहीं, बस ईमान माँगू तुझसे, तेरा ही चेहरा ताकूँ जब-जब घबराऊँ। मुश्किल में हूँ या मज़े में, मैं हर बात में शुक्र मनाऊँ।   ज़िन्दगी का कोई सफर हो, तेरे पीछे-पीछे चली आऊँ। कोई भी, कहीं भी मिले, हर चेहरे में तुझे पाऊँ।  बस तुझे सोचूं, बस तुझे देखूं, बस तुझे ढूढूं, बस तुझे पाऊँ।