संदेश

दिसंबर, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तू हर बार मिला है मुझको!

चित्र
कई रास्तों पे सफर किया है मैंने, दरिया का किनारा हो, या समंदर की गहराई, लम्बी-लम्बी सड़कें हों, या बहती नदी, अकेला रास्ता हो, या साथ में कोई, रात अँधेरी हो, या हर तरफ रौशनी, माहौल ग़मगीन हो, या राहें हों मुस्कुरातीं, अपनों का साथ हो, या अजनबी से दोस्ती, ख़ाली हाथ सहमे हों, या जेबें हो खनकती, बारिशों की गीली बुँदे हों, या ठिठरती हो सर्दी, पतझड़ का सूनापन हो, या चमकते सूरज की गर्मी, जब वो मुझे बारबरा बन के मिला: हैती - दिसंबर २०१५  हवा का झोंका बन के, तपती गर्मी में मिला है मुझको, पतझड़ में वो आख़री पत्ता बन के, डाली पे झूमता मिला है मुझको, सूरज की हिचकिचाती किरण बन के, कांपती ढंड में मिला है मुझको, मज़बूत झाड़ी बन के, फ़िसलती पहाड़ी पे मिला है मुझको, मुस्कुराहटों की गर्माइश बन के, उलझनों की बीच मिला है मुझको, मुख़्तलिफ़  शक्लों में मेरा हमदर्द बन के, बोझिल रास्तों पे मिला है मुझको, कैसा भी वक़्त हो, कोई भी हालात, तू मेहरबाँ बन के मिला है मुझको, कितना भी मायूस अँधेरा हो, तू हर बार उम्मीद बन के मिला है मुझको! 
नहीं शिकायत किसी मज़हब से मुझे, बस कोई खुदा को अपनी जागीर न समझे, हर इंसा को जिसने बनाया, उसे बस अपनी बातों-ओ-किताबों में ही हाज़िर न समझे