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नयी तारीख़: Happy New Year!

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एक और नया साल, नयी तारीख़, कल कि तारीख़, आज बन गयी तारीख़, क्या इस नए साल में लिख सकेंगे हम, एक नयी तारीख़? या फिर पुराने रंग-ढंग में ही, डूबी रहेगी यह भी तारीख़? औरत को इज़ज़त, ग़रीब कि ख़िदमत, क्या देख पाएगी हमारी तारीख़? कह रहें हैं आम आदमी का ज़माना आ गया है, क्या सचमुच आम आदमी को उठता देखेगी तारीख़? जब एक आदमी चढ़ता है तो आम नहीं रहता, क्या आम आदमी कि भीड़ को ऊंचाई पे देख पाएगी तारीख़? इतिहास में मरने-मारने कि बड़ी कहानियाँ हैं, क्या एकता और इंसानियत को हीरो बनाएगी नयी तारीख़? नए साल कि शुभकामनाएँ आज कि पीढ़ी को, जो लिखेगी बड़ों के आशीर्वाद से एक नयी तारीख़।  फ़ोटो: फेसबुक 

बातों की ईमारत

कंट्रीट कि नहीं, वो बनाता है बातों की ईमारत, बातें भी ऐसी जो वक़्त-बे-वक़्त बदल जातीं हैं, खोकली बातें, सिर्फ बातें ही बातें, अहंकार कि बातें, दूसरों को नीचा दिखाने वाली बातें, दिल को दुःखाने वाली बातें, मगर उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, वो बड़ी शिद्दत से बात पे बात रखता है, एक मंज़िल पे दूसरी मंज़िल बनाता  है, कमरों में कुर्सी-मेज़ भी बातों कि बना लेता है, मीठी बातों से जब चाहे बिठाता है, कड़वी बातों से जब चाहे ठोकर मार देता है, बड़ी दिलकश ईमारत बनाता है बातों की, लोग खिचें चले आते हैं, मगर सिर्फ बातों के दम पर कब रिश्ते टिका करते हैं? बातों के फर्श पर क़दम रखते ही, लोग मुँह की खाकर गिरा करते हैं, हाँ, दूर से यह ईमारत बड़ी अच्छी लगती है, शुरू शुरू में तो बातें भी मीठी ही होती हैं, बातें इतनी और इतना बदलतीं हैं के, ईमारत पूरी होने का नाम ही नहीं लेती, बातें बस चलती रहती हैं, कभी उससे, कभी इससे, भोले और भले लोग सुना भी करते हैं, कुछ थक गए हैं, सुनते सुनते, बेइज़त होते होते, बातों की ईटें बड़ी ज़ोर से लगतीं हैं, उम्र लग जाती है ठीक होते होते, और जब ज़ख्म बार

सुन

तू तस्सली रख, उम्मीद पे नज़र अपनी रख, अपनी मंज़िल पे ध्यान रख, होठों पे मुस्कराहट अपनी रख कोई रोक सके न तेरे कदम, कोई साथ रहे न रहे, साथ रहेंगे हम, गुस्से को भूल के, दिल में अपने बस ख़ुशी रख हाँ, दर्द होता है, जब कोई अपना ही बेदर्द होता है, तू अपने हमदर्दों से दोस्ती रख आंसूं पी के, मस्त धुन सुन, अपने मासूम सपनों को बुन, अपना सर ऊँचा और कामों में भलाई रख बुराई जो करीब आये तो दिल में न आने दे, मिले मुहोब्बत तो ज़हन में उतर जाने दे, दिल कि एक जेब में अच्छाई और दू सरी में सच्चाई रख  आएगा एक दिन तेरे पास, वो जो दूर खड़ा है, पहले जो लगाएगा  गले, जान ले, वही बड़ा है, मुठ्ठी में अपनी सदा माफ़ी रख  

पापा की गुड़िया

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हाँ मैं बच्चे से एक औरत बन गयी हूँ,  मगर अंदर से मैं वही तुम्हारी गुड़िया हूँ,   वही गुड़िया जिसे तुमने चलना सिखाया था  हाँ यह ज़िस्म बदल गया है, मगर मैं आज भी वही रूह हूँ,  जिसे तुमने पहली-पहली बार गोद में उठाया था  फ़ोटो:गूगल  आज भी जब डर जाती हूँ तो तुम्हें ढूंढ़ती हूँ,  ज़िन्दगी कि अँधेरी रातों में तुम्हें ढूंढ़ती हूँ, कुछ अच्छा होता है है तो तुम्हें  सोचती हूँ, तुम्हारी मुस्कुराती आँखें ढूंढ़ती हूँ, सोचती हूँ जब मुझे  ऊप्पर से देखते हो, कितनी बार मत्थे पर बल लाते हो, और कितनी बार शब्बाशी देते हो? या बस आँखों ही आँखों में मुस्कुराते हो…  दिल करता है तुमसे खूब बतियाने का, अपनी हर छोटी-बड़ी कामयाबी सुनाने का, कैसे सच हो रही हैं तुम्हारी दुआएँ हमारे लिए, बड़ी तफ्सील से तुम्हें सुनाने का.…  आज नहीं तो कल तुम्हारे पास आना ही है, खुदा के पहलू में तुम और मेरी कहानी होगी, यह उम्र तो वैसे भी फानी है, पापा, वहाँ अपनी मुलाक़ात रूहानी होगी

हाँ, हम बदल गये…

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फ़ोटो: गूगल  पँछियों  कि तरह उड़ना चाहा, पर मेरे आसमाँ  कि हद तय कर दी गयी, बहुत प्यार था उन धागों में जो न जाने कब ज़ंज़ीरों में बदल गए, दुलार दर्द में बदल गया, प्यार-भरे बोल धमकियों में बदल गए, तहज़ीब दीवारों में ढलने लगी जब रिवाज़ ईंटो में बदल गए, झाँसी कि रानी और इंदिरा ने भी रौंदी थी सरहदें, जब बेटी-बहु ने लांघी देहलीज़ तो सारे जज़्बात हथकड़ियों  में बदल गए, उड़ने कि कोशिश इल्ज़ामों के बीच उलझ गयी, सारे ख्वाब-ओ-हौसले एहसास-ए-गुनाहों में बदल गए, जब हदों ने सारी हदें पार कर दीं, कोई हद नहीं रही फिर, डर और कमज़ोरी के ख्याल हिम्मतों में बदल गए, फिर सोच लिया कि बस अब उड़ना है, आगे बढ़ना है दर-ओ-दीवारें खुली हवाओं में बदल गए, फ़ोटो: गूगल  आसमानों में खुदा को और क़रीब  से जाना, इंसानों के इख्तयार  उस  कि रहमतों में बदल गए

क्यूँ

क्यूँ छोटे से फ़र्क  को अपनी दुनिया बना लेते हैं कई लोग? इंसानियत के फ़र्ज़ को भुला के, क्यूँ नफ़रत की दुनिया बसा लेते हैं कई लोग? मैं जहाँ से देखती हूँ, सब एक से दिखते  हैं, क्यूँ खोकले ख्यालों-ओ-लफ्ज़ो की जंज़ीरो से अपनी दुनिया सजा लेते हैं कई लोग?

परिचय

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दिल बैठ सा रहा है, ख़ुशी का मौका है, मगर कुछ टूट सा रहा है, अपनी मट्टी से रिश्ता कुछ छुट सा रहा है, क्या सचमुच मैं यह कर रही हूँ? क्या सचमुच यह हो रहा है? कब ज़िन्दगी यहाँ तक ले आई? वो पहला कदम जो  लिया था अपने आप को ढूंढने के लिए, यहाँ तक ले आया…  क्या पा लिया अपने को? क्या यह मेरा नया परिचय है? हाँ, शायद यही हूँ मैं, आज  एक हिंदुस्तानी अमेरिकन।   क्या हिंदुस्तान के लिए अब मेरे दिल में जगह कम हो जाएगी? क्या दिल्ली मेरे दिल से अब  कुछ दूर हो जाएगी? हाँ, ये पक्का है के, अमेरिका से रिश्तेदारी  और बड़ जाएगी।  मगर दिल्ली, तू मेरे दिल में  यूँ ही धड़का करेगी, मेरा कोई नया परिचय  यह नहीं झुटला सकता के मेरा जन्म भारत में हुआ।    मगर मेरी नियति में ही था, सरहदों को लांगना, मानसिक, सामजिक, भूगोलिक  सरहदों को लांगना, हाँ, यही मेरा बुलावा है, सरहदों के पार रिश्ते बनाने का, प्यार बांटने और प्यार पाने का।  मैं ईमानदार रहूंगी  धरती माँ की, इंसानियत की, चाहे दुनिया

दिल्ली

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Purana Qila, New Delhi (Photo courtesy Joe Prewitt) कब तक यूँ ही आवाज़ देती रहेगी? थकती नहीं मुझे बुला-बुला कर? यादों की डोर से खेंचती रहती है, तेरा दिल नहीं भरता मुझे रुला-रुला कर? है यह कैसा रिश्ता तुझसे? मट्टी का रिश्ता तुझसे, उम्रभर का रिश्ता तुझसे, मेरे वजूद, मेरी हस्ती का रिश्ता तुझसे। कहते हैं सब कुछ तो है यहाँ (USA), मगर कुल्फी वाले की घंटी नहीं बजती यहाँ, गली में गोलगप्पों की महफ़िल  भी  नहीं लगती यहाँ, ईद और दिवाली पर मिठाई नहीं बँटती यहाँ। चाँदनी चौक से चाँदी की बाली लानी है, मम्मी के हाथ की खिचड़ी खानी है, छोटे भाई के साथ बैठ के खानी है, फिर से जीनी  वो कहानी है… ऐसा नहीं है के यहाँ कुछ अच्छा नहीं लगता, बस, कुछ भी अपना नहीं लगता, गुज़र रहें हैं दिन मगर दिल अभी इतना नहीं लगता, लोग  अच्छे  हैं, दोस्त कहूँ जिसे कोई ऐसा नहीं लगता। सुना है तू भी बदल रही है, ख़ौफ़ -गर्दी बढ़ रही है , कहीं आबरू लूट रही है, पहले से भी ज्यादा महँगाई की मार पड़ रही है, कहीं न कहीं तू भी सिसक रही है…  सुन, अपनी सड़कों पे लाज को संभाल के रखना,

ज़रूरी तो नहीं

ख ुश हूँ , बस इतना पता है , वजह समझना ज़रूरी तो नहीं टूटता   है   दिल   तो   टूटा   करे , हर बात पे आँसूं   बहाना ज़रूरी तो नहीं     चलते चलेंगे हम भी , सहरा हो या नखलिस्तान , हर मोड़ पे मिले महखाना ज़रूरी तो नहीं     कल भी तो लाएगा अपने हिस्से की ख़ुशी , आज पे हर दांव लगाना ज़रूरी तो नहीं     लफ़्ज़ों से खिलवाड़ कर लेते हैं थोडा बहोत , हम भी ग़ालिब से शायराना हों ज़रूरी तो नहीं   इमान - ओ - उम्मीद का   साथ काफी है , खुश रहने को कोई और   बहाना ज़रूरी तो नहीं
कभी लगता है टूट के बिखर न जाऊं कहीं, मगर यह तेरे रहम-ओ-करम की तौहीन होगी

तस्सली

पलकों को झपका के आँसूं सुखाके, आँखों में मुस्कराहट भरके, बड़ी तस्सली मिलती है एहसासों को लफ्जों में बदलके, शेरों को पन्ने पे बिखेरके, बड़ी तस्सली मिलती है कमिओं के बीच थोड़ा सा बचाके, अपनों में बांट के, बड़ी तस्सली मिलती है हसरतों को ख़्वाबों में सजाके, कुछ देर पलकों में बैठा के, बड़ी तस्सली मिलती है किसी दुखते दिल को छूके, उसमें थोड़ी उम्मीद भरके, बड़ी तस्सली मिलती है ज़रूरतों को दुआ में पिरोके, ईमान को सीने से लगाके, बड़ी तस्सली मिलती है
अपनी ग़लती की खबर, दुसरे की खूबी पे नज़र, या खुदा, कट जाये यूँ ही, ज़िन्दगी का सफ़र… 

हमेशा खुश रहना

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आज से ठीक एक साल पहले मेरे छोटे भाई अमित की शादी दिल्ली में हुई, और हमारे घर में एक नया जन्म हुआ। हमारे परिवार को एक और बेटी मिली उसकी पत्नी के रूप में। यह रचना उसी के लिए है :-) अम्मू - चमकी   छम-छम करती आई चमकी, सब के दिल को भाई चमकी, छोटी-छोटी हथेलियों में, ढेरों खुशियाँ भर लाई चमकी चमका है अम्मू का जीवन, चमका है सारा घर आँगन, जब जब है मुस्काई चमकी सुन्दरता में गहराई है, सादगी बालों में पिरो लाई है, बरकत बन कर आई चमकी नया घर है, नया परिवार, बाबुल का घर हर रविवार, अपने अम्मू पर इठलाई चमकी ज़रा से कन्धों पर बड़ी ज़िम्मेदारियाँ, घर सँभालने की हैं तैयारियाँ, सपने आँखों में भर लाई चमकी एक पुरानी कहानी दोहराती है, एहसासों की हर शै गुनगुनाती है सुहानी यादें फिर ज़िन्दा कर लाई चमकी मासूमियत रोम-रोम में समेटे है, समझदारी का आँचल लपेटे है, सबके दिल को हरने आई चमकी उसका रहम सदा रहे तुझ पर, उसका नूर सजा रहे तुझ पर, रहमतों की बारिशों में भीगने आई चमकी 

शायर की कहानी

नींद खेले आंखमिचौनी,  यादें करें मनमानी, दिल दौड़े दौड़ तूफानी, सुकून करे आनाकानी, यही है शायर की कहानी  शायरी की ज़ुबानी ….

दिल्ली वाला दर्द

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दिल्ली, तुझे छोड़ तो दिया, पर कभी छोड़ा नहीं तुझे, पहले मेरी रिहाइश तुझ में थी, अब तू मेरे दिल में रहती है   रेड क्रॉस की नौकरी के लिए मुझे अक्सर यहाँ-वहाँ जाना पड़ता है। दस साल पहले जब रेड क्रॉस के साथ काम शुरू किया, हर सफ़र दिल्ली से शुरू होता था और दिल्ली में ख़त्म हो जाता था। फिर ज़िन्दगी के सफ़र में कुछ ऐसे मोड़ आये की रेड क्रॉस के सफ़र अब दिल्ली में ख़त्म नहीं होते। हाँ, ख्वाहिश ज़रूर रहती है... चार दिन पहले वाशिंगटन डीसी से केंटकी जाते हुए, जहाज़ में इस रचना से मुलाकात हुई: फोटो: अंजना दयाल फिर एक और सफ़र, मगर यह सफ़र भी मेरी मंजिल तक नहीं जाता, दिल्ली आने से पहले ही रुक जाता है  ढूँढती हैं आँखे किसी हिंदुस्तानी चेहरे को, जिससे कुछ बात कर सकूं, फिर लिहाज़ से कुछ नहीं कहती, गर कोई मिल भी जाता है, अक्सर दिल्ली वाले दर्द को मीठी यादों से सहला लिया करती हूँ, छिपा लेती हूँ सबसे अगर कोई आँसू गिर भी जाता है ये खिड़की के बाहर बादल तो किसी सिम्त के गुलाम नहीं, क्या इन बादलों में कोई बादल मेरी सरज़मी तक भी जाता है? यूँ तो जा रहे हैं सभी मुसाफिर एक ही मंजिल की तर

Peace Calls: Wishing You All A Year full of Wisdom, Health and ...

Peace Calls: Wishing You All A Year full of Wisdom, Health and ... : Happy New Year to all my readers! As I was thinking of what to write today, the first day of 2013, I thought of sharing with you few posts ...