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जब अल्लाह के फ़ज़ल से ईश्वर की दया का मुक़ाबला होता है तो ख़ुदा हारता है, जब भारतमाता की जय और हिंदुस्तान ज़िंदाबाद के बीच होड़ लगती है तो पूरा इंडिया हारता है! #JaiHind #GodBless #WeAreStrongerTogether

याद रहे, अँगरेज़ चले गए!

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आज़ादी के वक़्त, तो बंटवारे और खून-खराबे का इलज़ाम हमने अंग्रेज़ों पे लगा दिया, आज की नफरत के लिए कौन ज़िम्मेदार है? कोई पार्टी? कोई  नेता? या हमारे ही दिल में 'उनके' लिए दिल में छिपा वो नजरिया, वो बातें, जो कभी ज़बाँ पे तो नहीं आतीं, मगर जब शहर में आग लगे, हम भी अपने दिल की चिंगारी उस में चुपके से मिला देते हैं, कभी अपने लफ़्ज़ों से, तो कभी अपनी चुप्पी से! कब तक सियासत के कंधे पे रख कर, हम अपनी कालिख़ की पिचकारी चलाते रहेंगे? सच तो यह है के दिल ही दिल में ये भी समझते हैं के माँस खाने वाला भी भगवान् को प्यारा होता है, और नमाज़ न पढ़ने वालों पर भी अल्लाह रहम करता है, फिर क्यों गुटबाज़ी करतें हैं, क्यों ढकोसलों में पड़ते हैं? अरे, जब जानते हैं के वो फ़र्क़ तो हैं, मगर दुश्मन नहीं, फिर क्यों सुनी-सुनाई बातों, पे अमल करते हैं? यह हिंदुस्तान की मिटटी है, इसमें तो हर रंग मिल जाता है, https://www.pinterest.com/pin/361554676307575248/  हिंदुस्तानी तहज़ीब में, हर कोई गले लगाया जाता है, याद है, एक वक़्त

मेरी दुआ

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इतनी इनायत हो जाए, मेरे हुज़ूर, इन आँखों में बस जाए छवि तुम्हारी, फिर जिसे देखूँ , तुम्हे देखूं, जहाँ देखूँ , सूरत हो बस तुम्हारी! इतनी गुज़ारिश है, मेरे मौला, चढ़ जाए यूँ नशा तुम्हारा, के दिन हो या रात हो, कभी उतरे न ख़ुमार  तुम्हारा! http://canacopegdl.com/keyword/hands-lifted-in-prayer.html इतनी सी दरख़्वास्त है, मेरे रब, रह पाऊँ क़दमों में तुम्हारे, डोलूँ कहीं भी फिर दुनिया में, पड़ी रहूं हरदम दर पे तुम्हारे!  इतनी दुआ है, मेरे बादशाह, सर सवार हो जाए धुन तुम्हारी, कोई साज़ हों, कोई अंजुमन, थिरकुँ मैं बस तान पे तुम्हारी! https://pixels.com/featured/god-colors-dolores-develde.html इतनी बिनती है, रहमवाले, ग़ालिब हो जाए मोहब्बत तुम्हारी, फिर कोई मसला हो, कोई मुश्किल, हर फैसला दिल का भीगा हो उल्फत में तुम्हारी! 
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उसका नूर बरसता रहे यूँ ही, दिल मुस्कुराता रहे यूँ ही, कदम बढ़ते रहें यूँ ही, वो बुलाता रहे यूँ ही।   Photo Credit: Joe Prewitt (Puerto Rico November 2018)

न जाने नींद क्यों नहीं आ रही?

दिल थका तो है, हर तरफ अँधेरा तो है, फिर जाने नींद क्यों नहीं आ रही? पलकों पे एक ख़्वाब बैठा तो है, सब ठीक सा तो है, फिर जाने नींद क्यों नहीं आ रही? बिन बुलाये ख़यालों  को धुतकारा तो है, सुस्त आँखों ने उसे बुलाया तो है, फिर जाने नींद क्यों नहीं आ रही? जिस्म के साथ मन को भी लिटाया तो है, करवटों को हौले से सहलाया तो है, फिर जाने नींद क्यों नहीं आ रही? ज़िन्दगी शायद कुछ ख़फ़ा तो है, मगर वक़्त ज़रा मुस्कुराया तो है, फिर जाने नींद क्यों नहीं आ रही?

कठपुतली

कहते हैं ज़िंदगी छोटी सी है, दिल की सुनो, फिर वही दिल फ़र्ज़ों में ज़िंदगी उलझा देता है। अपनी करो भी तो अपनी कहाँ चलती है? ये जहाँ अपनी करवाता है, तु अपनी करवाता है! मैं खिलौना हुँ सबका, या ये सब कोई खेल है? मुझे नचा भी रहें हैं, और ना थमने की तोहमत भी लगा रहें हैं! मैं खेलूँ या जियूँ, दौड़ूँ या नाचूँ? अगर मैं ही ज़िम्मेदार हूँ, अपने क़दमों के लिए, तो मुझे रोकने, इतने अड़ंगे क्यूँ भेज दिए? या तो मैं हुँ, या फिर बस तु है, मै , मेरा दिल, सब खेल का हिस्सा है, बस तु और तेरी डोरियाँ हैं, जिनसे तु मुझे नचाता है....

मेरा हाल

मुस्कुराती रहूंगी, सब झेल जाऊँगी, बस मेरा हाल मत पूछना, बिखर जाऊँगी। हर पर्वत हिम्मत से चढ़ जाऊंगी, मुझे गले न लगाना, सिहर जाऊंगी। उजालों में गाऊँगी, मुस्कुराऊँगी, आह भरने मगर, अंधेरें हों जहाँ उधर जाऊंगी। मैं टूट-टूट कर फिर जुड़ जाऊंगी, कैसा भी  मिले, पी हर कोई ज़हर जाऊँगी। रुक- रुक कर सही, आगे बढ़ती जाऊँगी, किस्मत में चाहे अभी भटकना है, कभी तो घर जाऊँगी !

मैं

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मैं नदी की तरह मुख़्तलिफ़ मुक़ामोँ से गुज़रती जाती हूँ, मुझे शीशे में उतारने की कोशिश न करो, कभी बूँद, कभी बादल, कभी दरिया, मुझे किसी एक रूप में सँवारने की कोशिश न करो...! 
जाने क्या चक्कर है, परदेस होते हुए जो रास्ता जाता है, उसपे दिल्ली से कराची का सफर, बड़ा छोटा हो जाता है।

कुदरत के सलीके

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बदल और नदी अच्छे लगते हैं, अपनी धुन में चलते हैं, मगर अपनी मंज़िल नहीं हैं भूलते। https://www.istockphoto.com/gb/photos/orange-sunset-over-river?excludenudity=true&sort=mostpopular&mediatype=photography&phrase=orange%20sunset%20over%20river बाग़ में पेड़ अच्छे लगते हैं, मस्त हवा में झूमते हैं, मगर अपनी जड़ों से हैं जुड़े रहते। https://stockarch.com/images/nature/plants/grove-tall-palm-trees-6000 चीं-चीं करते पंछी अच्छे लगते हैं, सारे एहसास चहचहाते हैं, मगर एक दूसरे से मिलके रहते। https://catherinejonapark.wordpress.com/2015/06/13/the-chirping-of-birds/ घांस में ये जुगनू अच्छे लगते हैं, स्याह अंधेरों में घूमते हैं , मगर  बूँद-बूँद  रौशनी बांटते फिरते। https://www.jsonline.com/story/news/local/wisconsin/2017/07/15/huge-summer-fireflies/465234001/ यह बारिश के छींटे अच्छे लगते हैं, बादलों की उँचाईओं में रहते हैं, मगर  प्यास बुझाने ज़मी पे बरसते। https://phys.org/news/2015-03-soil-moisture.html काश

एक आँसूं

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एक आँसूं आँख के किनारे पे बैठ के सोच रहा है, बह जाऊँ , सूख जाऊँ यहीं, या लिपटा रहूँ इन आँखों से यूँही, इस चेहरे की खूबसूरती को, यूँही चार चाँद लगाता रहूं, बेचारा ये नहीं जानता के ऐसे, हज़ारों आये और हज़ारों गए, और हज़ारों आएँगे, मेरे पापा की याद में....