क्या कहिये
जो रंजिश भी मोहब्बत से करे, उस दिल की क्या कहिये जो सज़ा दिलवाए माफ़ी में भिगो के, उस वकील की क्या कहिये जो जफा किये जाए दिल में दर्द लिए, उस ज़लील की क्या कहिये जो सहमी रहे दिल के तहखाने में, उस दलील की क्या कहिये जो मिल भी जाए और पाने की जुस्तुजू भी रहे, उस मंजिल की क्या कहिये जहाँ मेहमान भी आप ही हों और मेज़बान भी, उस महफ़िल की क्या कहिये जो डूब कर ही नसीब हो, उस साहिल की क्या कहिये