कौन कौन हूँ मैं?
अक्सर सोचती हूँ, क्या थी, कैसी हूँ अब, क्या ऐसी ही रहूंगी आने वाले कल में… क्यों मेरे संगी साथी इतने अलग-अलग हैं, डरती हूँ अपने अस्तित्व के लिए मगर चलती चली जाती हूँ विभिनता की ओर और समेटती रहती हूँ विभिनता अपने अन्दर… फिर याद आता है की वो भी तो अलग-अलग रंग में रिझाता है दुनिया को… साहस से भर जाती हूँ तब… शायद इस विभिनता में उस 'एक' से मिल जाऊं एक दिन….
कितनी सारी हूँ मैं, कौन कौन हूँ मैं?
सच हूँ, कभी झूठ, कभी मौन हूँ मैं
कुछ अपना सा हर जगह मिल जाता है
मन मेरा हर जगह घुलमिल जाता है
कैसे कहूँ, कौन हूँ मैं?
अपनी जड़ों से जुड़ी रहना चाहती हूँ,
असीम समीर सी बहना चाहती हूँ,
आवारगी या बंधन हूँ , कौन हूँ मैं?
खुदा की मुहब्बत में मज़हब से भागती हूँ,
कभी डर के तो कभी दलेरी से भागती हूँ,
कायर या इमानदार हूँ, कौन हूँ मैं?
रिश्ते बना लेती हूँ कोई मुल्क हो, कोई तहज़ीब,
वो अमल में जुदा सही, दिल के कितने क़रीब,
अजीब या मुनासिब हूँ, कौन हूँ मैं?
मुख्तलिफ माहोल में रम जाती हूँ,
बचपन की यादें भूला नहीं पाती हूँ,
माज़ी हूँ या आज हूँ, कौन हूँ मैं?
कभी बहन हूँ अफ्रीकन की,
कभी बेटी पुएर्तो-रिकन की,
दिल में हिंदुस्तान लिए, कौन हूँ मैं?
थोड़ी-थोड़ी सब की,
मगर पूरी कहीं नहीं,
कोई बताये, कौन हूँ मैं?
कितनी सारी हूँ मैं, कौन कौन हूँ मैं?
सच हूँ, कभी झूठ, कभी मौन हूँ मैं
कुछ अपना सा हर जगह मिल जाता है
मन मेरा हर जगह घुलमिल जाता है
कैसे कहूँ, कौन हूँ मैं?
अपनी जड़ों से जुड़ी रहना चाहती हूँ,
असीम समीर सी बहना चाहती हूँ,
आवारगी या बंधन हूँ , कौन हूँ मैं?
खुदा की मुहब्बत में मज़हब से भागती हूँ,
कभी डर के तो कभी दलेरी से भागती हूँ,
कायर या इमानदार हूँ, कौन हूँ मैं?
रिश्ते बना लेती हूँ कोई मुल्क हो, कोई तहज़ीब,
वो अमल में जुदा सही, दिल के कितने क़रीब,
अजीब या मुनासिब हूँ, कौन हूँ मैं?
मुख्तलिफ माहोल में रम जाती हूँ,
बचपन की यादें भूला नहीं पाती हूँ,
माज़ी हूँ या आज हूँ, कौन हूँ मैं?
कभी बहन हूँ अफ्रीकन की,
कभी बेटी पुएर्तो-रिकन की,
दिल में हिंदुस्तान लिए, कौन हूँ मैं?
थोड़ी-थोड़ी सब की,
मगर पूरी कहीं नहीं,
कोई बताये, कौन हूँ मैं?
टिप्पणियाँ
सुन्दरता से व्यक्त की है भावना ...
बधाई.
मेरे नए पोस्ट 'शब्द' में स्वागत है,....
मगर पूरी कहीं नहीं,
कोई बताये, कौन हूँ मैं?
आप उसकी अनुपम कृति हैं,अंजना जी.
वह सबका है और आप भी.
अभी थोडा थोडा लगता है आपको.
यकीं रहेगा तो पूरा भी लगेगा.
बूंद समंदर में मिल कब बूंद रहती है जी.
मेरे ब्लॉग पर आपके आने का दिल से शुक्रिया.
मेरे मुख्य ब्लॉग 'काव्यांजली'में
नए पोस्ट 'शब्द'में आपका इंतजार है...
सुन्दर भाव
सुंदर रचना !
♥
आदरणीया अंजना जी
सस्नेहाभिवादन !
बहुत सुंदर मनोभाव -
अपनी जड़ों से जुड़ी रहना चाहती हूँ,
असीम समीर सी बहना चाहती हूँ,
आवारगी या बंधन हूँ , कौन हूँ मैं?
खुदा की मुहब्बत में मज़हब से भागती हूँ,
कभी डर के तो कभी दलेरी से भागती हूँ,
कायर या इमानदार हूँ, कौन हूँ मैं?
रिश्ते बना लेती हूँ कोई मुल्क हो, कोई तहज़ीब,
वो अमल में जुदा सही, दिल के कितने क़रीब,
अजीब या मुनासिब हूँ, कौन हूँ मैं?
जीवन में हम इतने रूपों में जीते हैं …
अलग-अलग रोल कभी इच्छा से , कभी मजबूरी से निभाने ही पड़ते हैं
पुनः अच्छी रचना के लिए साधुवाद !
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!