छोटे-छोटे क़दमों का रिवाज़
उस बयाबाँ के पीछे एक बगीचा था,
ये नहीं पता था
दरख्तों के उस झुण्ड के पीछे गुलों का गलीचा था,
ये नहीं पता था
डर के मुड़ जाया करती थी
जंगल से घबराया करती थी,
डर को भी डराने एक तरीका था
ये नहीं पता था
फिर छोटे-छोटे क़दमों का सीखा रिवाज़ नया,
एक नई पगडण्डी का आगाज़ हुआ,
हर कदम डर को हौसले में बदल सकता था
ये नहीं पता था
अब कोई बयाबाँ कभी जो दिल जो डराता है,
हौसले को सिर्फ बगीचा ही नज़र आता है,
हौसला अपने दिल में ही कहीं छिपा था,
यह नहीं पता था
ये नहीं पता था
दरख्तों के उस झुण्ड के पीछे गुलों का गलीचा था,
ये नहीं पता था
डर के मुड़ जाया करती थी
जंगल से घबराया करती थी,
डर को भी डराने एक तरीका था
ये नहीं पता था
फिर छोटे-छोटे क़दमों का सीखा रिवाज़ नया,
एक नई पगडण्डी का आगाज़ हुआ,
हर कदम डर को हौसले में बदल सकता था
ये नहीं पता था
अब कोई बयाबाँ कभी जो दिल जो डराता है,
हौसले को सिर्फ बगीचा ही नज़र आता है,
हौसला अपने दिल में ही कहीं छिपा था,
यह नहीं पता था
टिप्पणियाँ
हौसले को सिर्फ बगीचा ही नज़र आता है,
हौसला अपने दिल में ही कहीं छिपा था,
यह नहीं पता था
उम्दा अभिव्यक्ति.
अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई
हौसले को सिर्फ बगीचा ही नज़र आता है,
हौसला अपने दिल में ही कहीं छिपा था,
यह नहीं पता था
बहुत सुंदर कहा आपने ...अपने आप को कभी हम पहचानते ही नहीं ..अगर पहचान जाते तो यह भ्रम न होते ..शुभकामनायें
बेहतरीन अभिव्यक्ति, बधाई
एक सुन्दर, मासूम सी रचना। बधाई
.
khubsurat rachna........
अभिवादन !
अब कोई बयाबां कभी जो दिल को डराता है,
हौसले को सिर्फ बगीचा ही नज़र आता है,
हौसला अपने दिल में ही कहीं छिपा था,
यह नहीं पता था
बहुत सुंदर भाव पिरोए हैं आपने रचना में , बधाई !
ऊर्जा हमारे अंदर ही होती है , पहचानने की आवश्यकता है
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हौसला अपने दिल में ही कहीं छिपा था,
बहुत खूबसूरत बात कही है ...हौसला हो तो डर होता ही नहीं
जी बिल्कुल अन्दर ही छुपा होता है बस हम ही कोशिश नही करते…………सुन्दर अभिव्यक्ति।
ये खूब भाव निचोड़ती है,
ये हमें भी पता न था ...
लिखते रहिये ...
एक नई पगडण्डी का आगाज़ हुआ,
हर कदम डर को हौसले में बदल सकता था
ये नहीं पता था
बहुत सुन्दर.
हौसले को सिर्फ बगीचा ही नज़र आता है,
हौसले जब मुखरित होते हैं तो बगीचा न हो तो भी बना लेगा