और मिल मुझसे, और मुझे दीवाना बना
और मिल मुझसे,
और मुझे दीवाना बना
गर दीवानगी ही चलन है इस ज़माने का,
मुझे अपना दीवाना बना
कूचा-ऐ-दिल में कुछ कोने ऐसे भी हैं,
जहाँ तेरा आना जाना नहीं है,
वहां भी तो अपना आशियाना बना
कभी करीब आता है,
कभी खो सा जाता है,
हर पल का हो साथ, ऐसा दोस्ताना बना
ठिकाना हर सफ़र का, तू बन जाए,
हर नज़ारा नज़र का, तू बन जाए,
तू मुझे इस कदर दीवाना बना
और मुझे दीवाना बना
गर दीवानगी ही चलन है इस ज़माने का,
मुझे अपना दीवाना बना
कूचा-ऐ-दिल में कुछ कोने ऐसे भी हैं,
जहाँ तेरा आना जाना नहीं है,
वहां भी तो अपना आशियाना बना
कभी करीब आता है,
कभी खो सा जाता है,
हर पल का हो साथ, ऐसा दोस्ताना बना
ठिकाना हर सफ़र का, तू बन जाए,
हर नज़ारा नज़र का, तू बन जाए,
तू मुझे इस कदर दीवाना बना
टिप्पणियाँ
इससे पहले यहाँ उस्ताद जी पधारें
८/१० हा हा हा...
मेरे ब्लॉग पर इस बार अग्निपरीक्षा ....
बहुत सुंदर !
कविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !
http://draashu.blogspot.com/2010/10/blog-post_20.html
बधाई स्वीकार करें ....
जहाँ तेरा आना जाना नहीं है,
वहां भी तो अपना आशियाना बना'
महीन पर्तों वाली बहुत अच्छी रचना....
सादर
डोरोथी.
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