मुस्कुराने दो
नहीं कहनी तकरीरें मुझको,
बस संग सबके मुस्कुराने दो
हिन्दू को, मुसलमां को, ईसाई-ओ-यहूदी को,
मेरे दिल के सुर्ख़ कोने में सुकूं से रहने दो
नहीं जीतनी कोई बेहस मुझे,
बस इन्सां को गले से लगाने दो
मैं भी वाकिफ़ हूँ फ़र्क़ों से, मगर
मुझे मुशबिहात में रम जाने दो
मेरे पास भी बर्दाश्त नहीं हर एक के लिए,
जिस-जिस को उसने बनाया, उनसे से तो दिल लगाने दो
बस संग सबके मुस्कुराने दो
हिन्दू को, मुसलमां को, ईसाई-ओ-यहूदी को,
मेरे दिल के सुर्ख़ कोने में सुकूं से रहने दो
नहीं जीतनी कोई बेहस मुझे,
बस इन्सां को गले से लगाने दो
मैं भी वाकिफ़ हूँ फ़र्क़ों से, मगर
मुझे मुशबिहात में रम जाने दो
मेरे पास भी बर्दाश्त नहीं हर एक के लिए,
जिस-जिस को उसने बनाया, उनसे से तो दिल लगाने दो
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