लौ-ए-उम्मीद
वो ख़ौफ़-ऐ-सज़ा में बांधते रहें हैं तुझे,
तेरे नाम के कई ठेकेदार हैं, ऊँची इमारतों में रहते हैं,
तू सर्दी में ठिठरती रूहों में मिलता रहा है मुझे
किताबों में तू लिखा गया है बड़ ी खूबी से, मगर
ज़िन्दगी के हादसों में सा फ़ दिखता रहा है मुझे
मेरे अपनों ने भी इनकार किया मेरा, मगर
तू बड़ी मुहोब्बत से अपनों में गिनता रहा है मुझे
रिवाज़-ओ-रिवायतों में उलझी दुनिया समझे ना समझे,
तू ख़ामोश दुआओं में सुनता-ओ-समझता रहा है मुझे
अब ग़मों की गुफाओं से डर कम लगता है,
तू बन के अंधेरों में लौ-ए-उम्मीद मिलता रहा है मुझे
यूँ ही नहीं छू लेते दिलों को यह लफ्ज़ ,
तू मेरी शायरी में मिलता रहा है मुझे
टिप्पणियाँ
सभी शेर दिल को छूते हुए गुजर गए....
कुछ शायद वहीँ ठहर गए...
अनु
धन्यवाद!
तू ख़ामोश दुआओं में सुनता-ओ-समझता रहा है मुझे
अनुपम,लाजबाब.
हर शब्द दिल से निकला हुआ,
दिल को सुनाता हुआ.
आपकी प्रस्तुति शब्दहीन कर रही है मुझे.
हार्दिक आभार.
ज़िन्दगी के हादसों में साफ़ दिखता रहा है मुझे
ये पंक्तियाँ केवल आप ही लिख सकती थीं. बहुत ख़ूब गुड़िया. बहुत बढ़िया लिखा है.
तू मेरी शायरी में मिलता रहा है मुझे
वाह ... लाजवाब करते शब्द ... अनुपम प्रस्तुति।
तू बन के अंधेरों में लौ-ए-उम्मीद मिलता रहा है मुझे
इस प्यार को संभाल के रखना जरूरी है ... किस्मत वालों को ये सब मिलता है ... भावमय प्रस्तुति ...