मैं भी हिंदुस्तान हूँ
अगर हर हिन्दुस्तानी को कम-से-कम एक साल के लिए हिंदुस्तान से दूर रहने का मौका मिले, ख़ासकर उन्हें जो अक्सर अपने देश की आलोचना किया करते हैं तो शायद उन्हें अपने देश और इस देश में जन्म लेने की सही कीमत पता लग सके. हाँ, गरीबी है, भ्रष्टाचार भी है, पर यह सब कहाँ नही है?
नहीं है तो देश की मिटटी की खुशबू नहीं है, बस स्टैंड के पास चाय की दूकान पे रेडियो पे बजते हिंदी फिल्मों के गाने नहीं हैं, घर में किसी भी समय आने वाले मेहमान नहीं हैं, वो पड़ोसी नहीं हैं जिनसे ज़रुरत पड़ने पर चाय की पत्ती मांगी जा सके और बड़ों के वो अनगिनत हाथ नहीं हैं जो सर छू कर दुआ देते नहीं थकते…
जब चाह कर भी लौट न पाएँ तो नाले के पानी की बदबू की याद भी अच्छी लगने लगती है. शायद इसलिए क्यूंकी वहां से गुज़रते हुए सहेली हमेशा साथ होती थी और साथ होती थी हंसी और मस्ती! हर याद दिल के और करीब आ जाती है. जो रिश्ते टूट गए, उनके टूटने की आवाज़ और ज़ोर से गूंजने लगती है, और जो रिश्ते जिंदा हैं उन्हें बरक़रार रखने की लौ ज़रा और तेज़ हो जाती है.
कभी रोटी, कभी पैसा, कभी ख्याति, कभी कोई और मजबूरी, अपनी मिटटी से दूर ले जाती है, मगर कोई भी चमक-धमक वापिस लौटने की इच्छा पे ग़ालिब नहीं हो पाती. सारी बुराइयाँ फीकी पड़ने लगती हैं. हाँ, यह ज़रूर याद रहता है की मेरे देश में हज़ारों तरीके पकवान बनते हैं, किसी भी मज़हब से जुड़ा त्यौहार क्यूँ न हो, हवा में खुशियाँ झूमने लगती हैं. कितनी सारी धुनें, अलग-अलग किस्म का संगीत, नाच, खाना, कपडे… कपड़ों में कितने प्रकार की छपाई, कढ़ाई, कितनी सारी भाषाएँ, उसे पुकारने को कितने नाम! भारतीय संस्कृति, इतिहास, आध्यात्मिकता इस दुनिया के खूबसूरत और अनूठे जेवर हैं!
उफ़, कुछ नहीं यहाँ, और अगर है भी तो सिर्फ एक महंगी झलक! हाँ, कुछ और भी है यहाँ, रोज़ उठते सवाल! कौन हूँ मैं? क्या एक दिन बिंदी लगा के मुक्कमल हिन्दुस्तानी बना जा सकता है? मगर फिर याद आता है की मेरी हिन्दुस्तानी रूह, मेरे हिंदुस्तान से दूर रहने के फैसले से ज्यादा ताकतवर है.
रसोईघर से हर रोज़ उठती मसाले की गंध, लैपटॉप में बजती ग़ज़लें, गोरी सहेलियों के हाथों में मेरी मेहँदी, हिंदी में बेटे को डांट, दिल्ली की यादों में भीगे ये आंसूं, मेरी कवितायें, वो देसी घी के दीप जो जीवन को राह दिखाते हैं, मेरे हिंदुस्तान को हिंदुस्तान के बाहर भी जिंदा रखते हैं. उस हिंदुस्तान को, जिस पर मुझे और मेरे जैसे करोड़ों हिन्दुस्तानियों को सिर्फ गर्व है और एक बेहतर कल के लिए कोई शक नहीं है.
याद-ए-सरज़मीं में भीगा रहता है
दिल के किसी कोने में एक दर्द छिपा रहता है
टिप्पणियाँ
How many times have your hands wiped the tears from my eyes as I thought about my homeland. Now it is my turn to do inkind.
Blessed are those that remember from whist they came from, for upon their return, they will be cuddled in the bosom of the homeland
सुंदर आलेख. बधाई.
दिल के किसी कोने में एक दर्द छिपा रहता है wah.....bahut achchi lagi.
दूर तक यादे वतन आई थी समझाने को.
आपकी पोस्ट पढ़ कर ये पंक्तियाँ याद आईं और आँखें नम हुईं.
अ मेरे बिछुडे वतन
तुझ पे दिल कुर्बान
जब भी इस गाने को सुनता हूँ
आँखों में आँसू आ जाते हैं.
आपने बहुत ही सच्चाई से दिल
के जज्बातों को प्रस्तुत किया हैं.
आपकी भावभीनी सुन्दर प्रस्तुति को
मेरा नमन.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
आपके प्रेरक सुन्दर वचन मेरा
मनोबल बढ़ाते हैं.