सौहार्द बन गया खतरा ?

ज़ुबानें काट डाली हैं,
आँखों को फोड़ डाला है,
जीना है तो हर एक को 
पीना भक्ति का प्याला है!

हाथ बाँध दिए हैं,
कलम तोड़ दी है,
ज़ालिम ने प्रजातंत्र की,
कमर तोड़ दी है!

चेहरे का मेकअप बदल,
क्या इंसान बदला जा सकता है?
दो चार स्मारक बदल,
क्या इतिहास बदला जा सकता है? 

सौहार्द खतरा बन गया,
सवाल अपमान बन गया,
नेता खुद देश बन गया,
क्या आज का हिंदुस्तान बन गया? 

हाँ, हिन्दू खतरे में है,
अगर वो निर्णय से परे है,
यदि तू गाँधी है, लंकेश है, लोया है,
हाँ तू खतरे में है! 




टिप्पणियाँ

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-04-2022) को चर्चा मंच       "दिनकर उगल  रहा है आग"  (चर्चा अंक-4415)       पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   
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