मम्मी, तुम हो!

नया साल सभी को मुबारक हो! 

मगर इस नए साल की खुशियां कुछ अधूरी हैं क्यूंकि अब सैकड़ों लोगों की दुनिया ही अधूरी हो गयी है! हमारा परिवार भी उन सैकड़ों लोगों में से है, जिन्होंने अपने प्रियजनों को Covid में खो दिया। पिछले साल अप्रैल/मई में हमने अपनी मम्मी और बड़े मामू को Covid ke Delta varient के प्रहार में खो दिया। जब तक हमें पता लगा की मम्मी को covid है, बहुत देर हो चुकी थी. कुछ ही घंटों में मम्मी हमें छोड़ के चली गयीं. एक बात की तस्सली है के उन्हें बहुत दर्द नहीं सहना पड़ा और उनके इलाज में किसी चीज़ की कमी नहीं हुई जैसा बहुतों के साथ उस समय  हुआ... मगर हम कुछ कह नहीं पाए एक दूसरे से... जैसे वह एकदम ग़ायब हो गयीं..! और मैं यहाँ US में अपने छोटे भाई का साथ भी न दे सकी, उसने अकेले सब कुछ किया... उस वक़्त मुझे नहीं पता मम्मी को खो देने का दर्द ज़्यादा बड़ा था, या छोटे भाई को अकेले सारे रस्म-रिवाज़ करते हुए zoom पे देखना ज़्यादा दर्दनाक था.... 

माँ का होना हमारे लिए बहुत ज़रूरी होता है, और उसका चला जाना भी हमारे जीवन के लिए बहुत शक्तिशाली होता है। मैं यह मानती हूँ की माँ जाकर भी हम से दूर नहीं जाती, इसलिए मैं अक्सर उससे बातें करती हूँ इस उम्मीद में के शायद वो मुझे सुन सकती है... 

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Kanta Dayal, My Mother

मम्मी,  फ़ूल देखती हूँ तो तुम याद आती हो,
आसमान देखती हूँ तो तुम याद आती हो, 
बारिश देखती हूँ तुम याद आती हो,
समंदर देखती हूँ तो तुम याद आती हो,
कुछ भी अच्छा देखती हूँ तो तुम याद आती हो,
मुस्कुरा कर कहती हूँ के 
मम्मी होतीं तो बोहोत खुश होतीं,
तुमने कहा था आओगी यहाँ,
फिर आयी नहीं...
हवाईजहाज़ देखती हूँ तो तुम याद आती हो,
किसी के गोल-मटोल हाथ देखती हूँ तो तुम याद आती हो,
किसी और की माँ देखती हूँ तो तुम याद आती हो,
बीमार हो जाती हूँ तो तुम याद आती हो,
कोई ख़ुशख़बरी हो तो तुम याद आती हो,
शानू को देखती हूँ तो तुम याद आती हो,
अम्मू को देखती हूँ तो तुम याद आती हो,
अजय को देखती हूँ तो तुम याद आती हो,
ख़ुद को देखती हूँ तो तुम याद आती हो,
तुम्हारे जाने के बाद,
मैंने तुम्हें और करीब से जाना,
तुम्हारे लफ़्ज़ों और तोहफों का मतलब समझा,
बिना 'I love you' कहे 
जो तुम खरी-खरी सुनाती थीं,
उस प्यार और दुलार का सबब समझा,
मम्मी, तुम बात-बात पर याद आती हो,
बस याद याद में फ़र्क़ होता है,
कभी लगता है चली गयी हो,
कभी लगता है यहीं कहीं हो,
पर मेरा दिल जानता है के तुम हो, 
जहाँ कहीं भी हो, मम्मी, तुम हो! 


 

टिप्पणियाँ

बहुत समय बाद तुमको पढ़ रही हूँ ....... सच ये ऐसा समय रहा कि बहुत लोगों ने अपनों को खोया ..... माँ हमेशा छाया बन कर बेटियों के मन में रहती है .... बहुत प्यार से यादों को समेटा है ....
मन में समाया दुख छलकने का अवसर ढूँढता है-बड़ी मुश्किल होता है स्वयं को समझाना ..इन्सान कितना लाचार है!
Sweta sinha ने कहा…
सचमुच बेहद मर्मस्पर्शी।
सादर।
रेणु ने कहा…
एक बेटी की कलम से आंसू छलक रहे है जो पढ़ने वालों की आँखें नम कर जाते हैं। विरह विगलित हृदय के साथ भी असीम स्नेह से समेटा है आपने दिवंगत मां की यादों को।
सच मां के न रहने का फर्क जीवनपर्यंत हर वक्त दिखता है । दिल को छूता सृजन ।

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