वक्त के निशाँ
जंगो से तबाह शहरों को देखो,
बिखरी हुई इमारतों को देखो,
बिखरी हुई इमारतों को देखो,
सूनी बदरंग सड़कों को देखो,
इंसाफ़ को चिल्लाती लाशों को देखो,
माँ की गोद के ख़ाली ख़ज़ानों को देखो,
बाप के हारे हुए इरादों को देखो,
लूटे हुए बचपन की आँखों को देखो,
इंसाफ़ को चिल्लाती लाशों को देखो,
माँ की गोद के ख़ाली ख़ज़ानों को देखो,
बाप के हारे हुए इरादों को देखो,
लूटे हुए बचपन की आँखों को देखो,
हारे हुए सैनिक के ज़ख़्मों को देखो,
जीते हुए सिपाही के ख़ाली हाथों को देखो,
जीते हुए सिपाही के ख़ाली हाथों को देखो,
खूबसूरत वादियों के वीरानों को देखो,
जागो, नफरत के नतीजों को देखो,
और फिर, फूलों से भरे बगीचों को देखो,
किलकारियों से गूँजते गलियारों को देखो,
न बटें हों मज़हबों से, उन रिश्तों को देखो,
खुल के बोलती हों, उन आवाज़ों को देखो,
रंगों से भरे, आज़ाद नज़ारों को देखो,
गहरी साँस ले कर अपने ख्वाबों को देखो,
देखो, अमन और दंगों के फर्कों को देखो,
नफरत और मोहब्बत के मुख़्तलिफ़ ठिकानों को देखो,
टटोलो खुद को, दिल के ख्यालों को देखो,
किस तरफ जा रहे हैं, कदमों को देखो,
चल रहे हो जिन पर, उन रास्तों को देखो,
समेट लो नफरत की दुकानों को, देखो,
फैलने दो मोहब्बत के फ़सानों को, देखो,
कहीं देर न हो जाए, वक़्त के निशानों को देखो!
तमाम जंगो से तबाह शहरों को देखो...
बिखरी हुई इमारतों को देखो...
बिखरी हुई इमारतों को देखो...
सूनी बदरंग सड़कों को देखो...
इंसाफ़ को चिल्लाती लाशों को देखो..
माँ की गोद के ख़ाली ख़ज़ानों को देखो...
इंसाफ़ को चिल्लाती लाशों को देखो..
माँ की गोद के ख़ाली ख़ज़ानों को देखो...
कहीं देर न हो जाए, वक़्त के निशानों को देखो...
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-०२-२०२१) को 'वक्त के निशाँ' (चर्चा अंक- ३९७६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
कहीं देर न हो जाए, वक़्त के निशानों को देखो..
मर्मस्पर्शी रचना ❗🙏❗
वाह!
किस तरफ जा रहे हैं, कदमों को देखो,
चल रहे हो जिन पर, उन रास्तों को देखो,
समेट लो नफरत की दुकानों को, देखो,
फैलने दो मोहब्बत के फ़सानों को, देखो,
कहीं देर न हो जाए, वक़्त के निशानों को देखो!.... वाह
बाप के हारे हुए इरादों को देखो, "
जंग से कभी कुछ हासिल नहीं हुआ फिर भी शदियों से जंग होता रहा है
मानवता को सचेत करती बहुत सुंदर ही सृजन , सादर नमस्कार