दिल्ली की बिंदी
साथ समंदर के सफर के बाद भी दिल्ली से ज़्यादा दूर कभी भी नहीं जा पायी! खाना रोज़ ही देसी पकता है, music/movies भी देसी चलती हैं. और दिन रात ट्विटर पर हिंदुस्तान की खबरें follow करती हूँ। मम्मी, भाई और दोस्तों से फ़ोन पर बात भी होती रहती है। मगर कभी-कभी यह सब कम पड़ जाता है।अपनी मिट्टी, अपने शहर की बहुत याद आती है तो मैं यहीं दिल्ली वाला माहौल create करने की कोशिश करती हूँ, देसी कपडे पहनके, खुद में वहां के लोगों तो ढूंढती हूँ... दिल्ली वाला सुरमा, दिल्ली का दुप्पट्टा, दिल्ली के झुमके, दिल्ली की बिंदी सब को साथ लेकर ख़ुद में छिपी दिल्लीवाली गुड़िया को पुकारती हूँ, वो मिल भी जाती है मगर बात नहीं बनती...
कोशिश करती हूँ पर वो बात नहीं बनती!
दिल्ली की ख़ुश्बू बस दिल में है महकती,
परदेस की हवाएँ रूखी हैं बड़ी,
कितने गुलाब खिला लो, पर वो बात ही नहीं बनती!
कोशिश करती हूँ पर वो बात नहीं बनती!
दिल्ली की ख़ुश्बू बस दिल में है महकती,
परदेस की हवाएँ रूखी हैं बड़ी,
कितने गुलाब खिला लो, पर वो बात ही नहीं बनती!
दिल्ली का सुरमा, ख़्वाब भी वहीँ से मँगवाता है,
दिल्ली की चुनरिया, दिल में कोई और शहर बसने ही नहीं देती,
दिल्ली की बिंदी ही कहाँ दिमाग़ में कुछ और आने देती है,
ये दिल्ली की पैदाईश, दिल्ली भूलने ही नहीं देती!
टिप्पणियाँ
(And really, it has absolutely NOTHING to do with genetics or some secret exercise and really, EVERYTHING about "HOW" they are eating.)
BTW, I said "HOW", not "what"...
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